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सरमद सहबाई

1945 | पाकिस्तान

अग्रणी आधुनिक पाकिस्तानी शायर और नाटककार

अग्रणी आधुनिक पाकिस्तानी शायर और नाटककार

सरमद सहबाई

ग़ज़ल 14

नज़्म 18

अशआर 3

उस के जाने का यक़ीं तो है मगर उलझन में हूँ

फूल के हाथों से ये ख़ुश-बू जुदा कैसे हुई

उस के मिलने पे भी महसूस हुआ है 'सरमद'

उस ने देखा ही हो मैं ने बुलाया ही हो

सब की अपनी मंज़िलें थीं सब के अपने रास्ते

एक आवारा फिरे हम दर-ब-दर सब से अलग

 

पुस्तकें 2

 

वीडियो 12

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सरमद सहबाई

सरमद सहबाई

सरमद सहबाई

सरमद सहबाई

सरमद सहबाई

सरमद सहबाई

दश्त में है एक नक़्श-ए-रहगुज़र सब से अलग

सरमद सहबाई

दश्त में है एक नक़्श-ए-रहगुज़र सब से अलग

सरमद सहबाई

हर सफ़र के बा'द वैसा ही सफ़र रक्खा गया

सरमद सहबाई

हर सफ़र के बा'द वैसा ही सफ़र रक्खा गया

सरमद सहबाई

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