शाहिद ज़की के शेर
मैं आप अपनी मौत की तय्यारियों में हूँ
मेरे ख़िलाफ़ आप की साज़िश फ़ुज़ूल है
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मैं सर-ब-सज्दा सकूँ में नहीं सफ़र में हूँ
जबीं पे दाग़ नहीं आबला बना हुआ है
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे
मैं समझता था मिरे यार समझते हैं मुझे
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रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं
हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे
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टैग : सरहद
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मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ
देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे
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फलों के साथ कहीं घोंसले न गिर जाएँ
ख़याल रखता हूँ पत्थर उछालता हुआ मैं
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बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है
सूरज से रौशनी की गुज़ारिश फ़ुज़ूल है
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लाशों में एक लाश मिरी भी न हो कहीं
तकता हूँ एक एक को चादर उठा के मैं
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अब मुझे बोलना नहीं पड़ता
अब मैं हर शख़्स की पुकार में हूँ
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मैं तो ख़ुद बिकने को बाज़ार में आया हुआ हूँ
और दुकाँ-दार ख़रीदार समझते हैं मुझे
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अभी तो पहले परों का भी क़र्ज़ है मुझ पर
झिजक रहा हूँ नए पर निकालता हुआ मैं
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