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तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

MORE BYताबाँ अब्दुल हई

    तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

    बला से तेरी मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश

    ख़ुशी तेरी जिसे हर-दम हो दरकार

    कोई इस से नहीं होता है ना-ख़ुश

    कोई अब के ज़माने में होगा

    इलाही आश्ना से आश्ना ख़ुश

    फ़लक के हाथ से ख़ालिक़-ए-ख़ल्क़

    कुइ नहीं के दुनिया में रहा ख़ुश

    तिरा साया हो जिस पर उस को हरगिज़

    आवे साया-ए-बाल-ए-हुमा ख़ुश

    क़फ़स में आह हद ईज़ा है हम को

    आती काश गुलशन की हवा ख़ुश

    अगर लावे तू बू उस गुल-बदन की

    तो हों तुझ से निहायत सबा ख़ुश

    किया क़त्ल उन ने मुझ को ग़ैर से मिल

    हुआ दुश्मन जुदा ख़ुश वो जुदा ख़ुश

    नसीहत की थी उन ने मय-कशों को

    बहुत मस्तों ने ज़ाहिद को किया ख़ुश

    मू-ए-आतिश में जल परवाना शम्अ'

    मोहब्बत से मैं उन की हद हुआ ख़ुश

    किया चाक जुनूँ तिरा भला हो

    कभू मैं इस गरेबाँ से था ख़ुश

    गया था सैर को ले साक़ी मय

    आई बाग़ की आब-ओ-हवा ख़ुश

    किया क़ातिल ने बिस्मिल को मिरे देख

    मुझे लगता है इस का लोटना ख़ुश

    सुने क्यूँकर वो लब्बैक-ए-हरम को

    जिसे नाक़ूस की आए सदा ख़ुश

    सताना बे-दिलों के दिल को हर-दम

    तुम्हें दिलबरो आता है क्या ख़ुश

    सुमूद क़ाक़ुम संजाब है पश्म

    मुझे आता है टूटा बोरिया ख़ुश

    सनम के पास से क़ासिद फिरा है

    ख़ुदा जाने कि मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश

    कोई ख़ुश होवे ख़ूबाँ की वफ़ा से

    मुझे तो उन की आती है जफ़ा ख़ुश

    छोड़ूँगा कभी मैं बुत-परस्ती

    हो गो मुझ से 'ताबाँ' ख़ुदा ख़ुश

    स्रोत :
    • पुस्तक : Deewan-e-Taban Rekhta Website) (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : Abdul Hai Taban
    • प्रकाशन : Anjuman Taraqqi Urdu (Hind) (1935)
    • संस्करण : 1935

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