aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
मुंशी अहमद हुसैन क़मर द्वारा लिखित यह कहानी तिलिस्म-ए- होश रुबा की अगली कड़ी प्रतीत होती है। हालाँकि इसे एक अलग कहानी कहा जाएगा, लेकिन चूँकि यह कहानी तिलिस्म-ए-होश रुबा के ख़त्म होने के बाद शुरू हुई है, इसलिए इसे इसकी अगली कड़ी के रूप में भी पहचाना जा सकता है और यह कहानी तिलिस्म-ए- होश रुबा से प्रतिरोपित भी है। इसलिए इस कहानी को इस का अगला भाग भी कहा जा सकता है इस संस्करण की विशेष बात यह है कि जब तिलिस्म-ए- होश रुबा पूरा हो गया, तो प्रागनारायण ने अहमद हुसैन को बुलाया और कहा कि आपने पहले तिलिस्म-ए- हफ्त पैकर का विज्ञापन दिया था, इसलिए जब वह कहानी पूरी हो गई है तो अब तिलिस्म-ए-हफ्त पैकर शुरू कर दें। इस प्रकार यह कहानी भी तीन खंडों में पूरी हुई जो 1909 में नवलकिशोर प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित की गई।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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