सरवरक़
वक्तव्य
ग़ज़लें
येः नः थी हमारी कि़स्मत केः विसाले यार होता
घर हमारा, जो नः रोते भी, तो वीराँ होता
नः था कुछ तो खुदा था, कुछ नः होता, तो खुदा होता
सुर्मः-ए-मुफ़ते नज़र हूँ मेरी क़ीमत येः है
नः होगा यक बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
गिला है शैक़ को दिल में भी तंगि-ए-जा का
नक़्श फ़र्यादी है किस शोखि़-ए-तहरीर का
मेहरम नहीं है तू ही नवा हाए राज़ का
यक ज़र्रः-ज़मीं नहीं बेकार बाग़ का
लबे खु़श्क दर तश्नगी मुर्दगाँ का
सरापा रेहने इश्क़-ओ-नागुज़ीरे उल्फ़ते हस्ती
सिताइश गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़े जि़्वां का
ग़ाफिल बः वहमे नाज़ खुदआरा है, वर्नः याँ
लताफ़त बेकसाफ़त जल्वः पैदा कर नही सकती
पै-ए नज़रे करम तोहफ़ा है शर्मे नारसाई का
गर नः अन्दोहे शबे फुकऱ्त बयाँ हो जाएगा
बज़्मे शेहनशाह में अशआर का दफ़तर खुला
शैक़ हर रंग रक़ीबे सर-ओ-सामाँ निकला
इश्रते क़तरः है, दरिया में फ़ना हो जाना
जि़क्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना
दरख़ुरे क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा नः हुआ
दर्द मिन्नतकशे दवा नः हुआ
क़तरः-ए-मय बस केः हैरत से नफ़त परवर हुआ
दहर में नक्शे वफ़ा वजहे तसल्ली नः हुआ
तू दोस्त किसी का भी, सितमगर! नः हुआ था
मै और बज़्में मय से यूँ तश्नः आउूँ
शब केः बकऱ्े सोज़े दिल से ज़हरः-ए-अब्र आब था
आज क्यूँ परवाः नहीं अपने असीरों की तुझे?
नालः-ए-दिल में शब अन्दाज़े असर नायाब था
क़त्अः
धमकी में मर गया जो नः बाबे नबर्द था
जुज़ क़ैस और कोई नः आया ब-रू-ए-कार
एक-एक क़तरे का मुझे देना पडा हिसाब
आईनः देख, अपना सा मुंह लेके रह गए
शब खुमारे शैक़े साक़ी रूस्तख़ज़ अन्दाज़ः था
शब केः वोः मजलिस फुरोज़े ख़लवते नामूस था
हुई ताख़ीर, तो तो कुछ बाइसे ताख़ीर थी था
वोः मेरी चीने जबीं से ग़मे पिन्हाँ समझा
अर्जे नियाज़े इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जब बतक़रीबे सफ़र यार ने महमिल बाँधा
फिर मुझे दीदः-ए-तर याद आया
शुमारे सुब्हः मरग़ूबे बुते मुश्किलपसन्द आया
जराहत तोहफ़ा, अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़े जिगर हदिय
कहते हो, नः देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
हवस को है नशते कार क्या-क्या
दोस्त, ग़मख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
दिल मेरा दिल मेरा साज़े निहाँ से बेमुहाबा जल गया
फिर हुआ वक़्त केः हो बाल कुश मौजे शबराब
मौजः-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़रगाहे ख्य़ाल
ग़ैर यूँ करता है मेरी परसिश उसके हिज्र में
आमदे ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ारे दोस्त
क़त्अः
अफ़सास केः का किया रिज़्क़ फ़लक ने
गुलशन में बन्दोबस्त बरंगे दिगर है आज
मुँद गईं, खोलते ही खोलते आाँखें ग़ालिब
रहा गर काई ता क़यामत सलामत
नफ़स नः अंजुमने आरज़ू से बाहर खेच
लो, हम मरीज़े इश्क़ के बीमार दार हैं
हुस्न, गम्ज़े़ की कशाकश से छुटा मेरे बाद
बला से, है जो येः पेशे नज़र दर-ओ-दीवार
लरज़ता है मेरा दिल ज़ेहमते मेहरे दरख़्शाँ पर
जुनूँ की दस्तगीरी किससे हो, गर हो नः उरयानी
सितमकश मस्लिहत से हूँ केः ख़ूबाँ तुझ पेः आशिक़ हैं
क्यों जल गया नः ताबे रुखे यार देखकर
सफ़ा-ए-हैरते आईनः, ळै सामाने ज़ंग आखि़र
साबित हुआ है गर्दने मीना पेः खू़ने ख़लक़
है बस केः हर इक उनके इशरे में निशँ और
घर जब बना लिया तेरे दर पर, कहे बिग़ैर
नः गुले नग़्मः हुँ पर्दः-ए-साज़
लाजि़म था केः देखे मेरा रस्ता काई दिन और
हरीफ़े मतलबे मुश्किल नहीं फुसूने नियाज़
वुसअते सई-ए-करम देख के सर ता सरे ख़ाक
क्यूकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
फ़ारिग़ मुझे नः जान, केः मानिन्दे सुब्ह-ओ-मेहर
मुज़्दः ऐ ज़ाक्के़ असीरी! केः नज़र आता है
रुखे़ निगार से है सोज़े जाविदानि-ए-शम्अ
जादः-ए-रह ख़ूर को वक़्ते शाम है तारे शुआ
नः लेवे गर ख़से जौहर तरावत सब्जः-ए-ख़त से
बीमे रक़ीब से नहीं करते विदाअ-ए-होश
आह को चाहिये इक उम्र असर हाते तक
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़लाने बेपरवा नमक
गर तुझको है यक़ीने इजाबत, दुआ नः माँग
है किस क़दर हलाके फ़रेबे वफ़ा-ए-गुल
बः नालः हासिले दिल बस्तगी फ़राहम कर
मुझको दयारे ग़ैर में मारा वतन से दूर
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़ यक नफ़स
वोः फि़राक़ और वोः विसाल कहाँ
दिल लगाकर, लग गया उनका भी तन्हा बैठना
हमसे खुल जाओ बवक़्ते मय परस्ती एक दिन
बरशकाले गिरयः-ए-आशिक़ है,देखा चाहिए
मेहरबाँ हो के बुलालो मुझे, चाहो जिस वक़्त
लूँ वाम बख़्ते खुफ़तः से यक ख़्वाबे खुश वले
ओहदे से मदहे नाज़ के बाहर नः आ सका
गुंचः-ए-ना शिगुफ़्तः को दूर से मत दिख केः यूँ
दिल ही तो है नः संग-ओ-खि़्सत दर्द से भर नः आए क्यूँ
दोनों जहान दे के वोः समझे येः खुश रहा
मिलती है खू़-ए-यार से नार, इल्तिहाब में
कल के लिए कर आज नः खि़स्स्त शराब में
नहीं है जख्म काई बखि़ए के दरख़ूर मेरे तन में
दाईम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ केः पीटूँ जिगर को मैं
क़यामत है के सुन लैला का दश्ते कै़स में आना
सब कहाँ, कुछ लालः-ओ-गुल में नमायाँ हो गई
नहीं केः मुझको क़यामत का एतिक़ाद नहीं
नालः जुज़ हुस्ने तलब, एक सितम ईजाद नहीं
इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं
जि़क्र मेरा, बः बदी भी उसे भी उसे मंजूर नहीं
हो गई है ग़ैर की शीरीं बयानी कारगर
मअने दश्त नवर्दी कोई तदबीर नहीं
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
क़त्अः
हम पर जफ़ा से तर्के वफा का गुमा नहीं
हरचन्द जाँगुदाजि़-ए-क़हर ओ इताब है
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की केः गुलशन में नहीं
दीवानगी से, दोश पेः जु़न्नार भी नहीं
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
ये हम जो जिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
मत मुर्दमके दीदः में समझो येः निगाहें
जहाँ तेरा नक़्शे क़दम देखते हैं
ज़मानः सख्त कम आज़ार है बः जाने असद
की वफ़ा हमसे, तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं
कअबे में जा रहा तो नः देा तअनः,क्या कहे
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पैहम है हमको
लखनऊ आने का बाइस नहीं खुलता, यअनी
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी नः जाने मेरे शेवन को
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीमतन के पाँव
हसद से दिल अगर अफ़सुर्दः है, गर्मे तमाशः हो
गई वोः बात के हो गुफ़्तगू, तो क्यूँकर हो
वास्तः इससे है केः मुहब्बत ही क्यूँ नः हो
वाँ उसको होले दिल है, तो याँ मैं हूँ शर्मसार
रहिए अब एैसी जगह चलकर, जहाँ कोई नः हो
किसी को देके दिल, कोई नवासंजे फ़ुगाँ क्यूँ हो
तुम जानो, तुमको ग़ैर से जो रस्म-आ-राह हो
है सब्ज़ ज़ार हर दर-ओ-दीवारे ग़मकद
अज़ मेहर ता-बः-जर्रः दिल-आ-दिल है आईनः
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कब वाबः सुनता है कहानी मेरी
निकोहिश है सज़ा, फ़रियादि-ए-बेदादे दिलबर की
रोंदी हुई है कौकबः-ए-शहरयार की
मंजूर थी येः शक्ल तजल्ली को नूर की
सियाही जैसे गिर जाऐ दमे तहरीर काग़ज़ पर
जुनूँ तोहमत कशे तस्कीं नः हो गर शदमानी की
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
ग़मे दुनिया से गर पाई भी फुर्सत सर उठाने की
हासिल से हाथ धे बैठ ऐ आरज़ू खि़रामी
जो नः नक़्दे दाग़े दिल की करे शेलः पासबानी
बिसाते अज्ज़ में था एक दिल, दिल यक क़तरः खूँ वोः भी
नः हुई गर मेरे मरने से तस्ल्ली नः सही
इश्क़ मुझको नहीं, वहशत ही सही
फिर इस अन्दाज़ से बहार आई
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
जब तक दहाने ज़ख़्म नः पैदा करे काई
इब्ने मरियम हुआ करे कोई
मैं उन्हें छेडूँ और कुछ नः कहें
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वोः मेरे
ता, हमको शिकायत की भी बाक़ी नः रहे जा
हम रश्क को अपने भी गवारः नहीं करते
वाबः आके ख़्वाब में तस्कीने इजि़्तराब तो दे
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत बः उरियानी करे
आईनः क्यूँ नः दूँ केः तमाशः कहें जिसे
कभी नेकी भी उसके जी में गर आजाए है मुझसे
आमदे सैलाबे तूफ़ाने सदा-ए-आब है
है बज़्में बुताँ में सुख़न आजुर्दः लबों से
सीमाब पुश्तगर्मि-ए-आईनः दे है, हम
ग़ैर लें महफि़ल में बोसे जाम के
अजब नशत से, जल्लाद के चले हैं हम, आगे
बाज़ीचः-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
नक़्शे नाज़े बुते तन्नाज़ बः आगोशे रक़ीब
हज़ारों ख़्वाहिशें एैसी के हर ख़्वाहिश पेः दम निकले
नवेदे अम्न है, बेदादे दोस्त जाँ के लिए
तस्कीं को हम नः रोएँ जो ज़ौके़ नज़र मिले
नुक़्तः चीं है, ग़मे दिल उसको सुनाए नः बने
जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे
हूँ मैं भी तमाशई-ए-नेरंगे तमन्ना
शिकवे के नाम से, बेमेहर ख़फ़ा होता है
खमः मेरा केः वोः है वारबदे बज्मे सुख़न
क़त्अः
मेरी हस्ती, फ़ज़ा-ए-हैरतआबादे तमन्ना है
हुस्ने मह गरचे बः हंगामे कमाल अच्छा है
शबनम बःगुले लालः नः ख़ाली ज़ादा है
हर एक बात पेः कहते हो तम केः तू क्या है?
बहोत सही ग़मे गेती, शराब कम क्या है
क़त्अः
ये परीचेहरः लोग कैसे हैं?
दिले नादाँ! तुझे हुआ क्या है?
रफ़्तारे उम्र, क़तः-ए-रहे इजि़्तराब है
जि़बस केः मश्के़ तमाशः जुनूँ अलामत है
ग़म ख़ाने में बादः दिले नाकाम बहोत है
जिस जा नसीम शनःकशे जुल्फ़े यार है
एक जा हर्फे़ वफ़ा लिख था सो भी मिट गया
तपिश से मेरी, वक़्फ़े कशमकश हरतारे बिस्तर है
चशमे खू़बाँ ख़ामूशी में भी नवापरदाज़ है
कोई दिन गर जि़न्दगानी और है
सर गश्तगी में, आलमे हस्ती से यास है
क्यूँ नः हो चश्मे बुताँ महवे तग़ाफुल क्यूँ नः हो
जुल्मतकदे में मेरे शब ग़म का जोश है
क़त्अः
ऐ ताज़ः वारिदाने बिसाते हवा-ए-दिल!
हुजूरे शाह में अहले सुख़न की आज़माइश से
मस्ती बः ज़ौके ग़फ़लत साक़ी हलाक़ है
गर खामूसी से फ़ाइदः इख़फ़ा-ए-हाल है
नः पूछ नुस्ख़ः-ए-मरहम जराहते दिल का
हुजूमे ग़म से, याँ तक सरनिगूनी मुझको हासिल है
कारगाहे हस्ती में लालः, दाग़ सामाँ है
हुजूमे नालः हैरत आजिज़े अर्जे़ यक अफ़ग़ाँ है
क्या तंग हम सितमज़दगाँ का जहान है
लबे ईसा की जुंबिश करती है गहवार जुंब्बानी
करे है बादः तेरे लब से कस्बे रंगे फ़रोग
सादगी पर उसकी, मर जाने की हसरत दिल में है
आ के मेरी जान में क़रार नहीं है
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
घर में था क्या केः तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
अर्जे़ नाजे़ शेखि-ए-दन्दाँ,बराए ख़न्दः है
रहम कर ज़ालिम! केः क्या बूदे चराग़े कुश्तः है
हुस्ने बेपरवः ख़रीदारे मताअ-ए-जल्वः है
नश्शःहा शदाबे रंग ओ साज़हा मस्ते तरब
ख़मोशियों में, तमाशः अदा निकलती है
तुम अपने शिकवे की बातें नः खेद-खेद के पूछो
फिर कुछ इक दिल को बेक़रारी है
फिर खुला है दरे अदालते नाज़
क़त्अ
तग़ाफ़ुल दोस्त हूँ मेरा दिमाग़े अज्ज़ आली है
गुलशन को तेरी सोहबत अज़बस केः खुश आई है
उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ः ग़ालिब
देखना कि़स्मत केः आप अपने पेः रश्क आजाए है
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
जि़न्दगी अपनी जअ इस शक्ल से गुज़री ग़ालिब
पा बः दामन हो रहा हूँ बस केः मैं सहरानवर्द
याद है शादी में भी हंगामः-ए-यारब मुझे
देखकर दर पर्द गर्मे दामन अफ़शनी मुझे
गर्मे फ़रियाद रख शक्ले निहाली ने मुझे
बाग़ पाकर ख़फ़कानी येः डराता है मुझे
कहते तो हो तुम सब केः बुते ग़ालियः मू आए
ख़तर है रिश्तः-ए-उल्फ़त रगे गर्दन नः हो जाए
रोने से, और इश्क़ में बेबाक हो गए
दर्द से मेरे है तुझको बेक़रारी हाय हाय
बेएतिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
मुद्दत र्हुअ है यार को मेहंमाँ किए हुए
कोह के हों बारे ख़ातिर गर सदा हो जाइए
चाहिए अच्छों को, जितना चाहिए
मसजिद के ज़रे सायः ख़राबात चाहिए
है वस्ल, हिज्र आलमे तमकीन-ओ-ज़बत में
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए
सद जल्बः रूबरू है, जो मिज़्श्गाँ उठाइए
कहूँ जो हाल, तो कहते हो, मुद्दआ कहिए
दिया है दिल अगर उसको, बशर है क्या कहिए
क़सीदे
क़साइद
साज़े यक ज़र्रः, नहीं फ़ैज़े चमन से बेकार
मत्लअ-ए-सानी
फ़ैज़ से तेरे है ऐ शम्अ-ए-शबिस्ताने बहार
दहर, जुज़ जल्वः-ए-यकताइ-ए-मअशूक़ नहीं
हाँ महे नौ! सुनें हम उसका नाम
ग़जल
ज़हरे ग़म कर चुका थ मेरा काम
कत्अः
फ़न्ने सूरतगरी में तेरा गुर्ज़
रअदका कर रही है क्या दम बन्द
कत्अः
सुब्हदम दरवाजः-ए-ख़ावर खुला
क़सीदः
तौसने शेह में वोः खू़बी है के जब
क़त्अः
ग़ज़ल
कुंज में बैठा रहूँ यूँ पर खुला
हाँ दिले दर्दमन्द ज़मज़मः साज़
मसनवी
क़त्अः
जान देने में उसको यक्ता जान
क़त्अे
क़त्आत
ऐ शंहशहे फ़लक मंज़रे बेमिस्ल-ओ-नज़ीर
गए वोः दिन केः नादानिस्तः गैरों की वफ़ादारी
क़त्अः
क़त्अः
कलकत्ते का जो जि़क्र किया तुने हमनशीं
है जो साहब के कफ़े दस्त पेः येः चिकनी डली
दर मदहे डली
क़त्अः
मंजूर है गुज़ारिशे अहवाले बाक़ई
नः पूछ इसकी हक़ीक़त, हुज़ूरे वाला ने
नुसरत-उल-मुल्क बहादुर, मुझे बतला केः मुझे
है चार शंबः आखिरे माहे सफ़र चलो़
ऐ शहे जहाँ गीरे जहाँबख़्शे जहादार!
इफ़्तारे सोम की कुछ अगर दस्तगाह हो
क़त्अः
ऐ शेहंशहे आसमाँ औरंग!
खुजिस्त अंजुमने तू-ए-मीरज़ा जाफ़र
सहल थ मुसहिल वले येः मुश्किल आ पड़ी
सियह गलीम हूँ, लाजि़म है मेरा नाम नः ले
गो एक बादशह के सब ख़ानः ज़ाद हैं
हुई जब मिर्ज़ा जाफ़र की शादी
रुबाईयाँ
शब जुल्फ़-आ-रुखे़ अर्क़फि़शाँ का ग़म था
बहद अज़ इतमामे बज़्मे ईदे अतफ़ाल
आतशबाज़ी है जैसे शग़्ले अलफ़ाल
है ख़ल्क़े हसद कि़माश लडने के लिए
दुख जीके पसन्द हो गया है ग़ालिब!
दिल था केः जाने दर्दे तमहीद सही
दिल सख़्त नज़्श्नद हो गया है गोया
भेजी है जो मुझको शहे जमजाह ने दाल
है शेह में सिफाते जुलजलाली बाहम
हक शेह की बक़ा से ख़ल्क़ को शाद करे
मुश्किल है जि़बस कलाम मेरा ऐ दिल
हम गर्चे बने सलाम करने वाले
इन सीम के बीजों को काई क्या जाने
इस रिश्ते मं लाख तार हों बल्केः सिवा
कहते हैं केः अब वोः मुर्दम आज़ार नहीं
सामाने खुर-ओ-ख्वाब कहाँ से लाऊँ?
सेहरा
खुश हो ऐ बख़्त! केः है आज तेरे सर सेहरा
सरवरक़
वक्तव्य
ग़ज़लें
येः नः थी हमारी कि़स्मत केः विसाले यार होता
घर हमारा, जो नः रोते भी, तो वीराँ होता
नः था कुछ तो खुदा था, कुछ नः होता, तो खुदा होता
सुर्मः-ए-मुफ़ते नज़र हूँ मेरी क़ीमत येः है
नः होगा यक बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
गिला है शैक़ को दिल में भी तंगि-ए-जा का
नक़्श फ़र्यादी है किस शोखि़-ए-तहरीर का
मेहरम नहीं है तू ही नवा हाए राज़ का
यक ज़र्रः-ज़मीं नहीं बेकार बाग़ का
लबे खु़श्क दर तश्नगी मुर्दगाँ का
सरापा रेहने इश्क़-ओ-नागुज़ीरे उल्फ़ते हस्ती
सिताइश गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़े जि़्वां का
ग़ाफिल बः वहमे नाज़ खुदआरा है, वर्नः याँ
लताफ़त बेकसाफ़त जल्वः पैदा कर नही सकती
पै-ए नज़रे करम तोहफ़ा है शर्मे नारसाई का
गर नः अन्दोहे शबे फुकऱ्त बयाँ हो जाएगा
बज़्मे शेहनशाह में अशआर का दफ़तर खुला
शैक़ हर रंग रक़ीबे सर-ओ-सामाँ निकला
इश्रते क़तरः है, दरिया में फ़ना हो जाना
जि़क्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना
दरख़ुरे क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा नः हुआ
दर्द मिन्नतकशे दवा नः हुआ
क़तरः-ए-मय बस केः हैरत से नफ़त परवर हुआ
दहर में नक्शे वफ़ा वजहे तसल्ली नः हुआ
तू दोस्त किसी का भी, सितमगर! नः हुआ था
मै और बज़्में मय से यूँ तश्नः आउूँ
शब केः बकऱ्े सोज़े दिल से ज़हरः-ए-अब्र आब था
आज क्यूँ परवाः नहीं अपने असीरों की तुझे?
नालः-ए-दिल में शब अन्दाज़े असर नायाब था
क़त्अः
धमकी में मर गया जो नः बाबे नबर्द था
जुज़ क़ैस और कोई नः आया ब-रू-ए-कार
एक-एक क़तरे का मुझे देना पडा हिसाब
आईनः देख, अपना सा मुंह लेके रह गए
शब खुमारे शैक़े साक़ी रूस्तख़ज़ अन्दाज़ः था
शब केः वोः मजलिस फुरोज़े ख़लवते नामूस था
हुई ताख़ीर, तो तो कुछ बाइसे ताख़ीर थी था
वोः मेरी चीने जबीं से ग़मे पिन्हाँ समझा
अर्जे नियाज़े इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जब बतक़रीबे सफ़र यार ने महमिल बाँधा
फिर मुझे दीदः-ए-तर याद आया
शुमारे सुब्हः मरग़ूबे बुते मुश्किलपसन्द आया
जराहत तोहफ़ा, अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़े जिगर हदिय
कहते हो, नः देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
हवस को है नशते कार क्या-क्या
दोस्त, ग़मख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
दिल मेरा दिल मेरा साज़े निहाँ से बेमुहाबा जल गया
फिर हुआ वक़्त केः हो बाल कुश मौजे शबराब
मौजः-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़रगाहे ख्य़ाल
ग़ैर यूँ करता है मेरी परसिश उसके हिज्र में
आमदे ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ारे दोस्त
क़त्अः
अफ़सास केः का किया रिज़्क़ फ़लक ने
गुलशन में बन्दोबस्त बरंगे दिगर है आज
मुँद गईं, खोलते ही खोलते आाँखें ग़ालिब
रहा गर काई ता क़यामत सलामत
नफ़स नः अंजुमने आरज़ू से बाहर खेच
लो, हम मरीज़े इश्क़ के बीमार दार हैं
हुस्न, गम्ज़े़ की कशाकश से छुटा मेरे बाद
बला से, है जो येः पेशे नज़र दर-ओ-दीवार
लरज़ता है मेरा दिल ज़ेहमते मेहरे दरख़्शाँ पर
जुनूँ की दस्तगीरी किससे हो, गर हो नः उरयानी
सितमकश मस्लिहत से हूँ केः ख़ूबाँ तुझ पेः आशिक़ हैं
क्यों जल गया नः ताबे रुखे यार देखकर
सफ़ा-ए-हैरते आईनः, ळै सामाने ज़ंग आखि़र
साबित हुआ है गर्दने मीना पेः खू़ने ख़लक़
है बस केः हर इक उनके इशरे में निशँ और
घर जब बना लिया तेरे दर पर, कहे बिग़ैर
नः गुले नग़्मः हुँ पर्दः-ए-साज़
लाजि़म था केः देखे मेरा रस्ता काई दिन और
हरीफ़े मतलबे मुश्किल नहीं फुसूने नियाज़
वुसअते सई-ए-करम देख के सर ता सरे ख़ाक
क्यूकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
फ़ारिग़ मुझे नः जान, केः मानिन्दे सुब्ह-ओ-मेहर
मुज़्दः ऐ ज़ाक्के़ असीरी! केः नज़र आता है
रुखे़ निगार से है सोज़े जाविदानि-ए-शम्अ
जादः-ए-रह ख़ूर को वक़्ते शाम है तारे शुआ
नः लेवे गर ख़से जौहर तरावत सब्जः-ए-ख़त से
बीमे रक़ीब से नहीं करते विदाअ-ए-होश
आह को चाहिये इक उम्र असर हाते तक
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़लाने बेपरवा नमक
गर तुझको है यक़ीने इजाबत, दुआ नः माँग
है किस क़दर हलाके फ़रेबे वफ़ा-ए-गुल
बः नालः हासिले दिल बस्तगी फ़राहम कर
मुझको दयारे ग़ैर में मारा वतन से दूर
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़ यक नफ़स
वोः फि़राक़ और वोः विसाल कहाँ
दिल लगाकर, लग गया उनका भी तन्हा बैठना
हमसे खुल जाओ बवक़्ते मय परस्ती एक दिन
बरशकाले गिरयः-ए-आशिक़ है,देखा चाहिए
मेहरबाँ हो के बुलालो मुझे, चाहो जिस वक़्त
लूँ वाम बख़्ते खुफ़तः से यक ख़्वाबे खुश वले
ओहदे से मदहे नाज़ के बाहर नः आ सका
गुंचः-ए-ना शिगुफ़्तः को दूर से मत दिख केः यूँ
दिल ही तो है नः संग-ओ-खि़्सत दर्द से भर नः आए क्यूँ
दोनों जहान दे के वोः समझे येः खुश रहा
मिलती है खू़-ए-यार से नार, इल्तिहाब में
कल के लिए कर आज नः खि़स्स्त शराब में
नहीं है जख्म काई बखि़ए के दरख़ूर मेरे तन में
दाईम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ केः पीटूँ जिगर को मैं
क़यामत है के सुन लैला का दश्ते कै़स में आना
सब कहाँ, कुछ लालः-ओ-गुल में नमायाँ हो गई
नहीं केः मुझको क़यामत का एतिक़ाद नहीं
नालः जुज़ हुस्ने तलब, एक सितम ईजाद नहीं
इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं
जि़क्र मेरा, बः बदी भी उसे भी उसे मंजूर नहीं
हो गई है ग़ैर की शीरीं बयानी कारगर
मअने दश्त नवर्दी कोई तदबीर नहीं
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
क़त्अः
हम पर जफ़ा से तर्के वफा का गुमा नहीं
हरचन्द जाँगुदाजि़-ए-क़हर ओ इताब है
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की केः गुलशन में नहीं
दीवानगी से, दोश पेः जु़न्नार भी नहीं
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
ये हम जो जिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
मत मुर्दमके दीदः में समझो येः निगाहें
जहाँ तेरा नक़्शे क़दम देखते हैं
ज़मानः सख्त कम आज़ार है बः जाने असद
की वफ़ा हमसे, तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं
कअबे में जा रहा तो नः देा तअनः,क्या कहे
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पैहम है हमको
लखनऊ आने का बाइस नहीं खुलता, यअनी
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी नः जाने मेरे शेवन को
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीमतन के पाँव
हसद से दिल अगर अफ़सुर्दः है, गर्मे तमाशः हो
गई वोः बात के हो गुफ़्तगू, तो क्यूँकर हो
वास्तः इससे है केः मुहब्बत ही क्यूँ नः हो
वाँ उसको होले दिल है, तो याँ मैं हूँ शर्मसार
रहिए अब एैसी जगह चलकर, जहाँ कोई नः हो
किसी को देके दिल, कोई नवासंजे फ़ुगाँ क्यूँ हो
तुम जानो, तुमको ग़ैर से जो रस्म-आ-राह हो
है सब्ज़ ज़ार हर दर-ओ-दीवारे ग़मकद
अज़ मेहर ता-बः-जर्रः दिल-आ-दिल है आईनः
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कब वाबः सुनता है कहानी मेरी
निकोहिश है सज़ा, फ़रियादि-ए-बेदादे दिलबर की
रोंदी हुई है कौकबः-ए-शहरयार की
मंजूर थी येः शक्ल तजल्ली को नूर की
सियाही जैसे गिर जाऐ दमे तहरीर काग़ज़ पर
जुनूँ तोहमत कशे तस्कीं नः हो गर शदमानी की
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
ग़मे दुनिया से गर पाई भी फुर्सत सर उठाने की
हासिल से हाथ धे बैठ ऐ आरज़ू खि़रामी
जो नः नक़्दे दाग़े दिल की करे शेलः पासबानी
बिसाते अज्ज़ में था एक दिल, दिल यक क़तरः खूँ वोः भी
नः हुई गर मेरे मरने से तस्ल्ली नः सही
इश्क़ मुझको नहीं, वहशत ही सही
फिर इस अन्दाज़ से बहार आई
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
जब तक दहाने ज़ख़्म नः पैदा करे काई
इब्ने मरियम हुआ करे कोई
मैं उन्हें छेडूँ और कुछ नः कहें
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वोः मेरे
ता, हमको शिकायत की भी बाक़ी नः रहे जा
हम रश्क को अपने भी गवारः नहीं करते
वाबः आके ख़्वाब में तस्कीने इजि़्तराब तो दे
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत बः उरियानी करे
आईनः क्यूँ नः दूँ केः तमाशः कहें जिसे
कभी नेकी भी उसके जी में गर आजाए है मुझसे
आमदे सैलाबे तूफ़ाने सदा-ए-आब है
है बज़्में बुताँ में सुख़न आजुर्दः लबों से
सीमाब पुश्तगर्मि-ए-आईनः दे है, हम
ग़ैर लें महफि़ल में बोसे जाम के
अजब नशत से, जल्लाद के चले हैं हम, आगे
बाज़ीचः-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
नक़्शे नाज़े बुते तन्नाज़ बः आगोशे रक़ीब
हज़ारों ख़्वाहिशें एैसी के हर ख़्वाहिश पेः दम निकले
नवेदे अम्न है, बेदादे दोस्त जाँ के लिए
तस्कीं को हम नः रोएँ जो ज़ौके़ नज़र मिले
नुक़्तः चीं है, ग़मे दिल उसको सुनाए नः बने
जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे
हूँ मैं भी तमाशई-ए-नेरंगे तमन्ना
शिकवे के नाम से, बेमेहर ख़फ़ा होता है
खमः मेरा केः वोः है वारबदे बज्मे सुख़न
क़त्अः
मेरी हस्ती, फ़ज़ा-ए-हैरतआबादे तमन्ना है
हुस्ने मह गरचे बः हंगामे कमाल अच्छा है
शबनम बःगुले लालः नः ख़ाली ज़ादा है
हर एक बात पेः कहते हो तम केः तू क्या है?
बहोत सही ग़मे गेती, शराब कम क्या है
क़त्अः
ये परीचेहरः लोग कैसे हैं?
दिले नादाँ! तुझे हुआ क्या है?
रफ़्तारे उम्र, क़तः-ए-रहे इजि़्तराब है
जि़बस केः मश्के़ तमाशः जुनूँ अलामत है
ग़म ख़ाने में बादः दिले नाकाम बहोत है
जिस जा नसीम शनःकशे जुल्फ़े यार है
एक जा हर्फे़ वफ़ा लिख था सो भी मिट गया
तपिश से मेरी, वक़्फ़े कशमकश हरतारे बिस्तर है
चशमे खू़बाँ ख़ामूशी में भी नवापरदाज़ है
कोई दिन गर जि़न्दगानी और है
सर गश्तगी में, आलमे हस्ती से यास है
क्यूँ नः हो चश्मे बुताँ महवे तग़ाफुल क्यूँ नः हो
जुल्मतकदे में मेरे शब ग़म का जोश है
क़त्अः
ऐ ताज़ः वारिदाने बिसाते हवा-ए-दिल!
हुजूरे शाह में अहले सुख़न की आज़माइश से
मस्ती बः ज़ौके ग़फ़लत साक़ी हलाक़ है
गर खामूसी से फ़ाइदः इख़फ़ा-ए-हाल है
नः पूछ नुस्ख़ः-ए-मरहम जराहते दिल का
हुजूमे ग़म से, याँ तक सरनिगूनी मुझको हासिल है
कारगाहे हस्ती में लालः, दाग़ सामाँ है
हुजूमे नालः हैरत आजिज़े अर्जे़ यक अफ़ग़ाँ है
क्या तंग हम सितमज़दगाँ का जहान है
लबे ईसा की जुंबिश करती है गहवार जुंब्बानी
करे है बादः तेरे लब से कस्बे रंगे फ़रोग
सादगी पर उसकी, मर जाने की हसरत दिल में है
आ के मेरी जान में क़रार नहीं है
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
घर में था क्या केः तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
अर्जे़ नाजे़ शेखि-ए-दन्दाँ,बराए ख़न्दः है
रहम कर ज़ालिम! केः क्या बूदे चराग़े कुश्तः है
हुस्ने बेपरवः ख़रीदारे मताअ-ए-जल्वः है
नश्शःहा शदाबे रंग ओ साज़हा मस्ते तरब
ख़मोशियों में, तमाशः अदा निकलती है
तुम अपने शिकवे की बातें नः खेद-खेद के पूछो
फिर कुछ इक दिल को बेक़रारी है
फिर खुला है दरे अदालते नाज़
क़त्अ
तग़ाफ़ुल दोस्त हूँ मेरा दिमाग़े अज्ज़ आली है
गुलशन को तेरी सोहबत अज़बस केः खुश आई है
उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ः ग़ालिब
देखना कि़स्मत केः आप अपने पेः रश्क आजाए है
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
जि़न्दगी अपनी जअ इस शक्ल से गुज़री ग़ालिब
पा बः दामन हो रहा हूँ बस केः मैं सहरानवर्द
याद है शादी में भी हंगामः-ए-यारब मुझे
देखकर दर पर्द गर्मे दामन अफ़शनी मुझे
गर्मे फ़रियाद रख शक्ले निहाली ने मुझे
बाग़ पाकर ख़फ़कानी येः डराता है मुझे
कहते तो हो तुम सब केः बुते ग़ालियः मू आए
ख़तर है रिश्तः-ए-उल्फ़त रगे गर्दन नः हो जाए
रोने से, और इश्क़ में बेबाक हो गए
दर्द से मेरे है तुझको बेक़रारी हाय हाय
बेएतिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
मुद्दत र्हुअ है यार को मेहंमाँ किए हुए
कोह के हों बारे ख़ातिर गर सदा हो जाइए
चाहिए अच्छों को, जितना चाहिए
मसजिद के ज़रे सायः ख़राबात चाहिए
है वस्ल, हिज्र आलमे तमकीन-ओ-ज़बत में
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए
सद जल्बः रूबरू है, जो मिज़्श्गाँ उठाइए
कहूँ जो हाल, तो कहते हो, मुद्दआ कहिए
दिया है दिल अगर उसको, बशर है क्या कहिए
क़सीदे
क़साइद
साज़े यक ज़र्रः, नहीं फ़ैज़े चमन से बेकार
मत्लअ-ए-सानी
फ़ैज़ से तेरे है ऐ शम्अ-ए-शबिस्ताने बहार
दहर, जुज़ जल्वः-ए-यकताइ-ए-मअशूक़ नहीं
हाँ महे नौ! सुनें हम उसका नाम
ग़जल
ज़हरे ग़म कर चुका थ मेरा काम
कत्अः
फ़न्ने सूरतगरी में तेरा गुर्ज़
रअदका कर रही है क्या दम बन्द
कत्अः
सुब्हदम दरवाजः-ए-ख़ावर खुला
क़सीदः
तौसने शेह में वोः खू़बी है के जब
क़त्अः
ग़ज़ल
कुंज में बैठा रहूँ यूँ पर खुला
हाँ दिले दर्दमन्द ज़मज़मः साज़
मसनवी
क़त्अः
जान देने में उसको यक्ता जान
क़त्अे
क़त्आत
ऐ शंहशहे फ़लक मंज़रे बेमिस्ल-ओ-नज़ीर
गए वोः दिन केः नादानिस्तः गैरों की वफ़ादारी
क़त्अः
क़त्अः
कलकत्ते का जो जि़क्र किया तुने हमनशीं
है जो साहब के कफ़े दस्त पेः येः चिकनी डली
दर मदहे डली
क़त्अः
मंजूर है गुज़ारिशे अहवाले बाक़ई
नः पूछ इसकी हक़ीक़त, हुज़ूरे वाला ने
नुसरत-उल-मुल्क बहादुर, मुझे बतला केः मुझे
है चार शंबः आखिरे माहे सफ़र चलो़
ऐ शहे जहाँ गीरे जहाँबख़्शे जहादार!
इफ़्तारे सोम की कुछ अगर दस्तगाह हो
क़त्अः
ऐ शेहंशहे आसमाँ औरंग!
खुजिस्त अंजुमने तू-ए-मीरज़ा जाफ़र
सहल थ मुसहिल वले येः मुश्किल आ पड़ी
सियह गलीम हूँ, लाजि़म है मेरा नाम नः ले
गो एक बादशह के सब ख़ानः ज़ाद हैं
हुई जब मिर्ज़ा जाफ़र की शादी
रुबाईयाँ
शब जुल्फ़-आ-रुखे़ अर्क़फि़शाँ का ग़म था
बहद अज़ इतमामे बज़्मे ईदे अतफ़ाल
आतशबाज़ी है जैसे शग़्ले अलफ़ाल
है ख़ल्क़े हसद कि़माश लडने के लिए
दुख जीके पसन्द हो गया है ग़ालिब!
दिल था केः जाने दर्दे तमहीद सही
दिल सख़्त नज़्श्नद हो गया है गोया
भेजी है जो मुझको शहे जमजाह ने दाल
है शेह में सिफाते जुलजलाली बाहम
हक शेह की बक़ा से ख़ल्क़ को शाद करे
मुश्किल है जि़बस कलाम मेरा ऐ दिल
हम गर्चे बने सलाम करने वाले
इन सीम के बीजों को काई क्या जाने
इस रिश्ते मं लाख तार हों बल्केः सिवा
कहते हैं केः अब वोः मुर्दम आज़ार नहीं
सामाने खुर-ओ-ख्वाब कहाँ से लाऊँ?
सेहरा
खुश हो ऐ बख़्त! केः है आज तेरे सर सेहरा
Thanks, for your feedback
अध्ययन जारी रखने के लिए कृपया कोड अंकित करें। कुछ सुरक्षा कारणों से यह आवश्यक है। इस सहयोग के लिए आपके आभारी होंगे।