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jis ke hote hue hote the zamāne mere
तेरह मासा या मसनवी "रुमूज़-उल-आशिक़ीन" एक असाधारण प्रेम काव्य रचन है जिसे तालिब शाह ने 1879 में रचित किया और 1890 में मतबा अवध अख़बार, लखनऊ से प्रकाशित किया गया। यह मसनवी न केवल एक साहित्यिक शृंगार है, बल्कि इसमें हिंदी महीनों की विशेषताएँ, उनके मौसम, फसलों और प्राकृतिक परिवर्तनों को प्रेम के जटिल पहलुओं के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह एक अद्वितीय मिश्रण बन जाता है। सामान्यतः दुनिया भर के कैलेंडरों में साल में बारह महीने होते हैं, लेकिन हिंदी कैलेंडर में हर तीन साल के बाद एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है, जिसे "अध मास" या "मल मास" कहा जाता है। यह महीना पूर्ण रूप से नहीं होता, बल्कि इसके दो हिस्से किए जाते हैं ताकि इस अतिरिक्त महीने को साल में समाहित किया जा सके, और इसे "लौंद" या "अध मास" के नाम से भी जाना जाता है।तेरह मासा में प्रत्येक महीने की विशेषताओं को न केवल मौसम की बदलती परिस्थितियों बल्कि प्रेम की घटनाओं के साथ प्रस्तुत किया गया है। कवि ने प्रत्येक महीने के स्वभाव और उसके मौसमीय प्रभावों को प्रेम की भावनाओं से मिलाकर एक नई काव्यात्मक भाषा का सृजन किया है। प्रत्येक महीने का एक विशिष्ट रंग और स्वभाव होता है, जो उसके मौसम, फसलों और प्राकृतिक परिस्थितियों से जुड़ा होता है। इन महीनों की सौंदर्यात्मकता को कवि ने प्रेम की भावनाओं के साथ जोड़कर एक रहस्यमय और आकर्षक दुनिया बनाई है।इस मसनवी में न केवल प्रेम की घटनाएँ और भावनाओं की तीव्रता को व्यक्त किया गया है, बल्कि प्रकृति के रंगों, खुशबुओं और मौसम के प्रभावों का सुंदर मिश्रण भी प्रस्तुत किया गया है।तालिब शाह ने प्रत्येक महीने की सौंदर्यात्मक जटिलताओं और भावनात्मक स्थितियों को अद्वितीय कलात्मकता से व्यक्त किया है, जो न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि मानव जीवन के विभिन्न आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलुओं की गहरी छवि भी प्रस्तुत करती है।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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