आज के नाम
फिर कोई आया दिले ज़ार! न्हीं कोई नहीं
इक ज़रा सोचने दो
यह रात उस दर्द का शजर है
बहुत सियह है यह रात लेकिन
अलम नसीबो जिगर फिगारों
तुम मेरे पास रहो
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझसे
यह धूप किनारा शाम ढले
गुल हुई जाती है अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
दिल के ऐवाँ में लिए गुमशुदा शमओं की क़तार
मेरी तेरी निगाह में
सब काट दो
मोती हो कि शीश जाम कि दुर
यह दाग़ दाग़ उजाला यह शब गुज़ीदा सहर
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
यह कौन सख़ी हैं
फिर बर्फ़ फ़रोज़ाँ है सरे वादिये सीना
सुनो कि शयद यह नूरे सैक़ल
मत रो बच्चे
आ जाओ मैने सुन ली तेरे ढोल की तरंग
तेरे हांठों के फूलों की चाहत में हम
बाम-ओ-दर ख़ाम्शी के बोझ से चूर
शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी, ज़र्द दोपहर
यहोँ सें शहर को देखे तो हल्क़ा दर हल्क़ा
तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी कि हो है
रह गुज़र साये, शजर मन्जि़ल-ओ-दर हल्क़ये बाम
हम कि ठहरे अजनबी इतनी मदारातों के बाद
अब बज़्मेे सुख़न सोहबते लब सोेख़्तागाँ है
मौत अपनी न अमल अपना न जीना अपना
सच है हमीं को आपके शिकवे बजा न थे
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
शहर में चाक गरेबाँ हुए नापैद अबके
हर सम्त परीशाँ तिरी आमद के क़रीने
रंग पैराहन का ख़ुश्बू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम
यह मौसमे गुल गर चे तरब ख़ेज़ बहुत है
मेरा दर्द नग़मये बेसदा
सजे तो कैसे सजे क़त्ले आम का मेला
मेरे दिल मेरे मुसाफि़र
किसी तरह जायेगी जिस रोज़ क़ज़ा आयेगी
शायद इस तरह की जिस तौर कभी आखिरे शब
इस वक़्त तो यूं लगता है अब कुछ भी नहीं है
नागहाँ आज मेरे तारे नज़र से कट कर
क़र्जे निगाहे यार अदा कर चुके है हम
वफ़ाये वादा नहीं, वादये दिगर भी नहीं
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारये शाम
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
जमेगी कैसे बिसाते यारां कि शशओ जाम बुझ गये हैं
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
न गंवाओ नावके नीम कश दिल रेज़ा रेज़ा गंवा दिया
हम मुसाफि़र यूं ही मसरूफ़े सफ़र जायेगे
आज के नाम
फिर कोई आया दिले ज़ार! न्हीं कोई नहीं
इक ज़रा सोचने दो
यह रात उस दर्द का शजर है
बहुत सियह है यह रात लेकिन
अलम नसीबो जिगर फिगारों
तुम मेरे पास रहो
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझसे
यह धूप किनारा शाम ढले
गुल हुई जाती है अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
दिल के ऐवाँ में लिए गुमशुदा शमओं की क़तार
मेरी तेरी निगाह में
सब काट दो
मोती हो कि शीश जाम कि दुर
यह दाग़ दाग़ उजाला यह शब गुज़ीदा सहर
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
यह कौन सख़ी हैं
फिर बर्फ़ फ़रोज़ाँ है सरे वादिये सीना
सुनो कि शयद यह नूरे सैक़ल
मत रो बच्चे
आ जाओ मैने सुन ली तेरे ढोल की तरंग
तेरे हांठों के फूलों की चाहत में हम
बाम-ओ-दर ख़ाम्शी के बोझ से चूर
शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी, ज़र्द दोपहर
यहोँ सें शहर को देखे तो हल्क़ा दर हल्क़ा
तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी कि हो है
रह गुज़र साये, शजर मन्जि़ल-ओ-दर हल्क़ये बाम
हम कि ठहरे अजनबी इतनी मदारातों के बाद
अब बज़्मेे सुख़न सोहबते लब सोेख़्तागाँ है
मौत अपनी न अमल अपना न जीना अपना
सच है हमीं को आपके शिकवे बजा न थे
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
शहर में चाक गरेबाँ हुए नापैद अबके
हर सम्त परीशाँ तिरी आमद के क़रीने
रंग पैराहन का ख़ुश्बू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम
यह मौसमे गुल गर चे तरब ख़ेज़ बहुत है
मेरा दर्द नग़मये बेसदा
सजे तो कैसे सजे क़त्ले आम का मेला
मेरे दिल मेरे मुसाफि़र
किसी तरह जायेगी जिस रोज़ क़ज़ा आयेगी
शायद इस तरह की जिस तौर कभी आखिरे शब
इस वक़्त तो यूं लगता है अब कुछ भी नहीं है
नागहाँ आज मेरे तारे नज़र से कट कर
क़र्जे निगाहे यार अदा कर चुके है हम
वफ़ाये वादा नहीं, वादये दिगर भी नहीं
शफ़क़ की राख में जल बुझ गया सितारये शाम
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
जमेगी कैसे बिसाते यारां कि शशओ जाम बुझ गये हैं
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
न गंवाओ नावके नीम कश दिल रेज़ा रेज़ा गंवा दिया
हम मुसाफि़र यूं ही मसरूफ़े सफ़र जायेगे
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