भूमिका
विषय-सूची
समझे वही उसको जा हो दीवाना किसी का।
बिगड़े हुए बन गये हँसी में।
क़ैस का जि़क्र मेरे शने-जुनूँ के आगे
अजल से वह डरैं जीने को जो अच्छा समझते हैं
आ गई जुल्फ़े-मिसाँ जुल्फ़े बुताँ पर ग़ालिब
दाँत का दर्द बदस्तूर चला जाता है।
यूरुप की गो है जंग की ब़ूबत बढ़री हुई।
ख़्वाहाने नौकरी न रहैं तालिबाने इल्म।
बे परदा कल जो आईं नज़र चन्द बीबियाँ।
कहा किसी ने ये सैयद से आप ऐ हज़रत।
ग़लत-फ़हमी बहुत है आलमे अलफ़ाज़ में अकबर।
अपने मिनक़ारों से फन्दा कस रहे हैं जाल का।
क़ौम के ग़म में डिनर खइए हुक्काम के साथ।
मेरी तरफ़ से सारा जहाँ बदगुमाँ है अब।।
समझे वही उसको जो हो दीवाना किसी का।
चुनी हुई ग़ज़लें
रोशन दिले आरिफ़ से फि़ जूँ है बदन उनका।
क्यो मेरे इक दिल को खुश करने प वह कादीर नहीं।
यह सुस्त है तो फिर क्यो वह तेज़ है तो फिर क्या।
कम बिज़ाअत को जो इक ज़र्रा भी होता है फ़रोग।
कूदते फिरते हैं यह बाग़् में मल्हू की तरह।
बनोगे खुसरवे इक़लीमे-दिल शीरीं-ज़बाँ होकर।
तअल्लुक़ आशिक़ों -माशक़ का तो लुत्फ़ रखता था।
खुशमदी को मुबारक हो रात दिन चक्कर।
मुंह देखते हैं हजरत अहबाब पी रहे हैं।
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
हुबाब आसा में दम भरता हूँ तेरी आशनाई का।
ये फ़क़त नहीं है काफ़ी कि मेरा मिज़ाज पूछें।
हस्ती के शजर में जो ये चाहो कि चमक जाब।
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख।
मुरीदे दहेर हुए वज़ा मग़रबी कर ली।
कुछ तर्जे़-सितम भी है कुछ अन्दाज़े-वफ़ा भी।
यानी को भुला देती है सूरत है तो यह है।
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम है मुन्तशिर।
हासिल हो कुछ मआश यह मेहनत की बात है।
अपना रंग उनसे मिलाना चाहिये।
मज़हब कभी सायन्स को सिजदा न करेगा।
जज़्बये-दिल ने मेरे तासीर दिखलाई तो है।
मुझे उनसे है सरे-दोस्ती तेरी आरज़ू भी अजीब है।
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है।
हंगामा है क्या बरपा थोइी सी जो पी ली है।
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
दम लबों पर था दिले-ज़ार के घबराने से।
सामयिक और सामाजिक पद
कहा मजनूँ से यह लैला की माँ ने।
तअज्जुब से कहने लगे बाबू साहब।
बहुत ही उम्दा हे ऐ हमनशीन बिरटिश राज।
दिल्ली-दरबार
विविध विषय
कर्जन-सभा
ग़ज़ल ज़बानी एक़बाल परी
आना एक़बाल परी का
मुबारकबाद पंच की तरफ़ से
जुडोर का जलप्रपात
सर सैयद से मुठभेड़
गिरजाघर की बिजली
विवाह-रइस्य
विवाह-रइस्य
चिट्ठी पयाम-यार के संपादक के नाम
आधुनिक जीवन और उद्देश
उर्दू-काव्य-सम्बन्धी परिभषा
भूमिका
विषय-सूची
समझे वही उसको जा हो दीवाना किसी का।
बिगड़े हुए बन गये हँसी में।
क़ैस का जि़क्र मेरे शने-जुनूँ के आगे
अजल से वह डरैं जीने को जो अच्छा समझते हैं
आ गई जुल्फ़े-मिसाँ जुल्फ़े बुताँ पर ग़ालिब
दाँत का दर्द बदस्तूर चला जाता है।
यूरुप की गो है जंग की ब़ूबत बढ़री हुई।
ख़्वाहाने नौकरी न रहैं तालिबाने इल्म।
बे परदा कल जो आईं नज़र चन्द बीबियाँ।
कहा किसी ने ये सैयद से आप ऐ हज़रत।
ग़लत-फ़हमी बहुत है आलमे अलफ़ाज़ में अकबर।
अपने मिनक़ारों से फन्दा कस रहे हैं जाल का।
क़ौम के ग़म में डिनर खइए हुक्काम के साथ।
मेरी तरफ़ से सारा जहाँ बदगुमाँ है अब।।
समझे वही उसको जो हो दीवाना किसी का।
चुनी हुई ग़ज़लें
रोशन दिले आरिफ़ से फि़ जूँ है बदन उनका।
क्यो मेरे इक दिल को खुश करने प वह कादीर नहीं।
यह सुस्त है तो फिर क्यो वह तेज़ है तो फिर क्या।
कम बिज़ाअत को जो इक ज़र्रा भी होता है फ़रोग।
कूदते फिरते हैं यह बाग़् में मल्हू की तरह।
बनोगे खुसरवे इक़लीमे-दिल शीरीं-ज़बाँ होकर।
तअल्लुक़ आशिक़ों -माशक़ का तो लुत्फ़ रखता था।
खुशमदी को मुबारक हो रात दिन चक्कर।
मुंह देखते हैं हजरत अहबाब पी रहे हैं।
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
हुबाब आसा में दम भरता हूँ तेरी आशनाई का।
ये फ़क़त नहीं है काफ़ी कि मेरा मिज़ाज पूछें।
हस्ती के शजर में जो ये चाहो कि चमक जाब।
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख।
मुरीदे दहेर हुए वज़ा मग़रबी कर ली।
कुछ तर्जे़-सितम भी है कुछ अन्दाज़े-वफ़ा भी।
यानी को भुला देती है सूरत है तो यह है।
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम है मुन्तशिर।
हासिल हो कुछ मआश यह मेहनत की बात है।
अपना रंग उनसे मिलाना चाहिये।
मज़हब कभी सायन्स को सिजदा न करेगा।
जज़्बये-दिल ने मेरे तासीर दिखलाई तो है।
मुझे उनसे है सरे-दोस्ती तेरी आरज़ू भी अजीब है।
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है।
हंगामा है क्या बरपा थोइी सी जो पी ली है।
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
दम लबों पर था दिले-ज़ार के घबराने से।
सामयिक और सामाजिक पद
कहा मजनूँ से यह लैला की माँ ने।
तअज्जुब से कहने लगे बाबू साहब।
बहुत ही उम्दा हे ऐ हमनशीन बिरटिश राज।
दिल्ली-दरबार
विविध विषय
कर्जन-सभा
ग़ज़ल ज़बानी एक़बाल परी
आना एक़बाल परी का
मुबारकबाद पंच की तरफ़ से
जुडोर का जलप्रपात
सर सैयद से मुठभेड़
गिरजाघर की बिजली
विवाह-रइस्य
विवाह-रइस्य
चिट्ठी पयाम-यार के संपादक के नाम
आधुनिक जीवन और उद्देश
उर्दू-काव्य-सम्बन्धी परिभषा
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