आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
मेरी जानिब इक नज़र ऐ दीदा-वर मैं भी तो हूँ
बे-अमाँ साए का भी रख बाद-ए-वहशत कुछ ख़याल
देख कर चल दरमियान-ए-बाम-ओ-दर मैं भी तो हूँ
रात के पिछले पहर पुर-शोर सन्नाटों के बीच
तू अकेली तो नहीं ऐ चश्म-ए-तर मैं भी तो हूँ
तू अगर मेरी तलब में फिर रहा है दर-ब-दर
अपनी ख़ातिर ही सही पर दर-ब-दर मैं भी तो हूँ
तेरी इस तस्वीर में मंज़र मुकम्मल क्यूँ नहीं
मैं कहाँ हूँ ये बता ऐ नक़्श-गर मैं भी तो हूँ
सुन असीर-ए-ख़ुश-अदाई मुंतशिर तू ही नहीं
मैं जो ख़ुश-अतवार हूँ ज़ेर-ओ-ज़बर मैं भी तो हूँ
ख़ुद-पसंदी मेरी फ़ितरत का भी वस्फ़-ए-ख़ास है
बे-ख़बर तू ही नहीं है बे-ख़बर मैं भी तो हूँ
देखती है जूँ ही पस्पाई पे आमादा मुझे
रूह कहती है बदन से बे-हुनर मैं भी तो हूँ
दश्त-ए-हैरत के सफ़र में कब तुझे तन्हा किया
ऐ जुनूँ मैं भी तो हूँ ऐ हम-सफ़र मैं भी तो हूँ
कूज़ा-गर बे-सूरती सैराब होने की नहीं
अब मुझे भी शक्ल दे इस चाक पर मैं भी तो हूँ
यूँ सदा देता है अक्सर कोई मुझ में से मुझे
तुझ को ख़ुश रक्खे ख़ुदा यूँही मगर मैं भी तो हूँ
- पुस्तक : Takrar-e-saa.at (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : Irfan Sattar
- प्रकाशन : Dehleez Publication (2016)
- संस्करण : 2016
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