आज करना थी तवज्जोह चाक-ए-दामाँ की तरफ़
आज करना थी तवज्जोह चाक-ए-दामाँ की तरफ़
ध्यान जा निकला मगर इक रू-ए-ताबाँ की तरफ़
जब हवा के नाम पहुँचा आमद-ए-शब का पयाम
एक झोंका चल दिया शम-ए-फ़रोज़ाँ की तरफ़
एक चेहरा जगमगाया है सर-ए-दश्त-ए-ख़याल
एक शो'ला उठ रहा है दिल से मिज़्गाँ की तरफ़
ये बयाबाँ और उस में चीख़ती गाती हवा
उन से दिल भर ले तो जाऊँ राह-ए-आसाँ की तरफ़
इस तरह हाइल नहीं होते किसी की राह में
क्यूँ भला इतनी तवज्जोह एक मेहमाँ की तरफ़
ऐन मुमकिन है कि तू सच बोल कर ज़िंदा रहे
मैं इशारा कर रहा हूँ एक इम्काँ की तरफ़
इक तक़ाज़ा बेबसी की राख में दहका हुआ
इक तज़ब्ज़ुब का सफ़र इंकार से हाँ की तरफ़
जिस के बदले मौत सदियों की बसर करना पड़े
ज़िंदगी का क़र्ज़ इतना तो नहीं जाँ की तरफ़
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