भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक
भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक
सग भी न उस का आया मिरी उस्तुख़्वाँ तलक
गो हम क़फ़स से जा न सके बोस्ताँ तलक
उड़ उड़ के रंग-ए-चेहरा गया पर वहाँ तलक
बुलबुल हुजूम-ए-गुल है चमन में यहाँ तलक
फूलों से छा गया है तिरा आशियाँ तलक
कब पहुँची आह ज़ोफ़ से गोश-ए-बुताँ तलक
सौ जा ठहर के सीने से आई ज़बाँ तलक
पर्वाज़ पेश अज़ीं थी मिरी आसमाँ तलक
अब तो चमन से जा न सकूँ आशियाँ तलक
ऐसा किया ज़ईफ़ ग़म-ए-इंतिज़ार ने
आँखों को मेरी बार है ख़्वाब-ए-गिराँ तलक
आलिम हूँ इल्म-ए-इश्क़ का मैं कर न हम-सरी
ऐ अंदलीब तू है पड़ी बोस्ताँ तलक
उस मह के वस्फ़ से ये हुआ मर्तबा बुलंद
पहुँची मिरी ग़ज़ल की ज़मीं आसमाँ तलक
पास-ए-अदब रहा है जुनूँ में भी इस क़दर
आता हूँ सज्दे करता तिरे आस्ताँ तलक
उस मस्त के हैं गेसूओं के सिलसिले में हम
साक़ी मुरीद जिस का है पीर-ए-मुग़ाँ तलक
रक्खें अदब से पाँव न हम तेरी राह में
बाहर जब आप से हों तो पहुँचें वहाँ तलक
फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में गुल का तो आना मुहाल है
बिजली ही काश आए मिरी आशियाँ तलक
क्यूँकर न सर फिरे मिरा उस तेग़ के लिए
गर्दिश सी जुस्तुजू में है मर्ग-ए-निशाँ तलक
सौ बार अपनी फ़िक्र अदम से परे गई
लेकिन न पहुँची यार के मु-ए-बयाँ तलक
उस हूर का मकान है जन्नत से भी परे
रिज़वाँ पहुँच सके न कभी पासबाँ तलक
इस दर्जा फ़र्त-ए-ज़ोफ़ से हम पीछे रह गए
पहुँची न आह भी जरस-ए-कारवाँ तलक
दिल में हमारे उस की मोहब्बत ने घर किया
पहुँचा है इस मकान से जो ला-मकाँ तलक
अल्लाह रे दिमाग़ ज़रा देख ऐ हुमा
आया न बे-तलब सग-ए-यार उस्तुख़्वाँ तलक
उस माह ने जो सर मिरा ठुकराया पाँव से
पहुँचा दिमाग़ आज मिरा आसमाँ तलक
नख़्ल-ए-मुराद-ए-यार हुआ आज बारवर
सद शुक्र कट के सर मिरा पहुँचा सिनाँ तलक
फिर जाए तीर आ के वो बरगश्ता बख़्त हूँ
रुख़ फेरे देख कर मुझे उस की कमाँ तलक
मरने के ब'अद है सग-ए-जानाँ का इंतिज़ार
कह दो हुमा न आए मिरी उस्तुख़्वाँ तलक
सौ बार आ के मौत भी फ़ुर्क़त में फिर गए
बरगश्तगी नसीब की कहिए कहाँ तलक
'गोया' ये ना-तवानी का एहसान मुझ पे है
आने दिया न यार का शिकवा ज़बाँ तलक
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.