हक़ीक़त जब बयाँ होगी तो पैदा तल्ख़ियाँ होंगी
हक़ीक़त जब बयाँ होगी तो पैदा तल्ख़ियाँ होंगी
तअ'ज्जुब क्या नतीजे में अगर ख़ूँ-रेज़ियाँ होंगी
अगर फ़िरऔन पैदा हो तो मूसा को भी आना है
उजाले का जनम होगा अगर तारीकियाँ होंगी
ज़माना उस के किरदार-ओ-अमल से मुन्हरिफ़ होगा
किसी के ख़ून में शामिल अगर चंगेज़ियाँ होंगी
हमारा वक़्त आएगा मगर अम्न-ओ-अमाँ ले कर
तुम्हारा दौर है मालूम है ख़ूँ-रेज़ियाँ होंगी
हम इतना जानते हैं हम बग़ावत करने वाले हैं
न जाने किस क़दर हम पर सितम-अंगेज़ियाँ होंगी
तशद्दुद सहने वाले ही बग़ावत करते आए हैं
न समझो राख इन को राख में चिंगारियाँ होंगी
बहा ले जाएँगी मौजें सभी कच्चे मकानों को
निशाँ तक भी न होगा वो तलातुम-ख़ेज़ियाँ होंगी
मैं मलबे में भी पहचानूँगा अपनों की दबी लाशें
कहीं तो जिस्म से लिपटी हुई कुछ धज्जियाँ होंगी
हमारा हौसला कितना है ये साहिल बता देगा
वहाँ जलती हुई सारी की सारी कश्तियाँ होंगी
हम ऐसे पस्ता-क़द की सम्त 'अहसन' कौन देखेगा
जहाँ पर शहर की ऊँची से ऊँची हस्तियाँ होंगी
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