इलाही जैसे हम उस शम-ए-अंजुमन से मिले
इलाही जैसे हम उस शम-ए-अंजुमन से मिले
इसी तरह से हर इक अपने गुल-बदन से मिले
मिले न शैख़ से दिल और न बरहमन से मिले
मिले तो उस के रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन से मिले
मुए प क़ब्र में कौन और ख़स्ता-तन से मिले
कफ़न बदन से मिले और बदन कफ़न से मिले
न तंग कर मुझे उस ने कहाँ ये मुँह पाया
कि गुल का ग़ुंचा तिरे ग़ुंचा-ए-दहन से मिले
भुला दे उस को अभी पल में चौकड़ी सारी
निगाह-ए-शोख़ अगर आहू-ए-ख़ुतन से मिले
ख़ुदा ने क़त्अ किया है तुझी पे ये जामा
फबन किसी का तिरे किस तरह फबन से मिले
वो छोड़े क्यूँकि भला मश्क़ दिल जलाने की
मज़ा जिसे दिल-ए-आशुफ़्ता की जलन से मिले
यहाँ तो पेच उठाया करे दिल-ए-सद-चाक
सितम है शाना वहाँ ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन से मिले
फ़ज़ा-ए-सीना में यूँ है हुजूम आहों का
दरख़्त जैसे कि आपस में होएँ घन से मिले
हुआ ये है हमें इरशाद-ए-मुश्फ़िक़ाना जो कल
हम एक बज़्म में हाँ एक अहल-ए-फ़न से मिले
कि याद रख तू है शे'रों में ऐब रब्त-ए-कलाम
वो शे'र हों कि न हरगिज़ सुख़न सुख़न से मिले
और एक इस के सिवा याद रख ये है ख़ूबी
वो तर्ज़ हो कि न तर्ज़-ए-नौ-ओ-कुहन से मिले
फिर उस के बा'द दम-ए-सर्द भर के फ़रमाया
ये नुक्ते हम को सुना थे बड़े जतन से मिले
सवेरे आगे बयाँ हम ने कर दिए यूँही
बयान कीजियो जो शाइक़ान-ए-फ़न से मिले
ज़हे नसीब तुझे इस तरह मिली दौलत
वो जो मिले भी किसी को तो एक कठन से मिले
कहें सुनेंगे हम आपस में दर्द-ए-दिल अपना
चमन में 'ऐश' जो हम बुलबुल-ए-चमन से मिले
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