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जो रंजिशें थीं उन्हें बरक़रार रहने दिया

शकील आज़मी

जो रंजिशें थीं उन्हें बरक़रार रहने दिया

शकील आज़मी

MORE BYशकील आज़मी

    जो रंजिशें थीं उन्हें बरक़रार रहने दिया

    गले मिले भी तो दिल में ग़ुबार रहने दिया

    नए मकान की ता'मीर कर तो ली हम ने

    पुरानी छत को मगर बरक़रार रहने दिया

    कोई ख़्वाब दिखाया ग़म दिया उस को

    बस उस की आँखों में इक इंतिज़ार रहने दिया

    उसे भुला भी दिया याद भी रखा उस को

    नशा उतार दिया और ख़ुमार रहने दिया

    गली के मोड़ से आवाज़ दे के लौट आए

    तमाम रात उसे बे-क़रार रहने दिया

    वो हम को तोड़ के जाता तो भूल जाते उसे

    निकलने वाले ने लेकिन हिसार रहने दिया

    जाने क्या था कि उस से फ़रेब खा कर भी

    उसी के हाथ में सब इख़्तियार रहने दिया

    ये सर्द रुत भी हमें ख़ुद को तापते गुज़री

    ग़ज़ल को हम ने मगर साया-दार रहने दिया

    बड़ा गुमान था उस को हमारी चाहत का

    'शकील' हम ने भी उस का ख़ुमार रहने दिया

    स्रोत :
    • पुस्तक : दिल परिन्दा है (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : शकील आज़मी
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2023)
    • संस्करण : First

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