कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले
मैं ने देखा था तुझे अब से बहुत दिन पहले
आज तक गोश-बर-आवाज़ हूँ सन्नाटे में
हर्फ़ उतरा था तिरे लब से बहुत दिन पहले
मैं ने मस्ती में ये पूछा था कि हस्ती क्या है
रफ़्तगान-ए-मय-ओ-मशरब से बहुत दिन पहले
मस्लक-ए-इश्क़ फ़क़ीरों ने किया था आग़ाज़
ऐ मबलग़ तिरे मज़हब से बहुत दिन पहले
फिर किसी मय-कदा-ए-हुस्न में वैसी न मिली
जैसी पी थी किसी ख़ुश-लब से बहुत दिन पहले
एक शख़्स और मिला था मुझे तेरे जैसा
तू न था ज़ेहन में जब, जब से बहुत दिन पहले
हज़रत-ए-शैख़ का इक रिंद से कैसा रिश्ता
हाँ मिले थे किसी मतलब से बहुत दिन पहले
क्या तिरी सादगी-ए-तब्अ नई शय है 'शुऊर'
लोग चलते थे इसी ढब से बहुत दिन पहले
- पुस्तक : Andokhta (पृष्ठ 107)
- रचनाकार : Anwar Shuoor
- प्रकाशन : Arts Council of Pakistan, Karachi (2007)
- संस्करण : 2007
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