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किसी को कैसे दिखाऊँ मैं अपनी रात के खेल

फ़रहत एहसास

किसी को कैसे दिखाऊँ मैं अपनी रात के खेल

फ़रहत एहसास

MORE BYफ़रहत एहसास

    किसी को कैसे दिखाऊँ मैं अपनी रात के खेल

    जो मेरी ज़ात में होते हैं काएनात के खेल

    गुनाह इतने बढ़ाए कि पुल ही तोड़ दिया

    पुल-ए-सिरात से खेले पुल-ए-सिरात के खेल

    खिलाड़ी हम हैं मगर खेलता है और कोई

    हमारे हाथ में कब हैं हमारे हात के खेल

    हम इस बिसात पे उल्टी तरफ़ से बैठे हैं

    हमारे हाथ में आए हैं सारे मात के खेल

    हम अपने ख़ूँ की रवानी में शे'र लिखते हैं

    उधर वो खेल रहे हैं क़लम दवात के खेल

    बदन बचाओ कि अब के बदन की बारी है

    कि रूह खेल चुकी अपने सब नजात के खेल

    ये लोग मौत से इतने डरे हुए हैं कि बस

    कोई सिखाए कहाँ तक इन्हें हयात के खेल

    स्रोत :
    • पुस्तक : मोहब्बत कर के देखो ना (पृष्ठ 58)
    • रचनाकार : फ़रहत एहसास
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2019)
    • संस्करण : First

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