कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
किसी की जान की दुश्मन न हो बला-ए-फ़िराक़
हज़ार तरह के सदमे इसे गवारा हैं
मगर उठा नहीं सकता है दिल जफ़ा-ए-फ़िराक़
लबों पे जान है अब सदमा-हा-ए-दूरी से
ख़बर विसाल की देती है इंतिहा-ए-फ़िराक़
ज़बान बंद है ये जोश-ए-ग़म का आलम है
बयान हो नहीं सकता है माजरा-ए-फ़िराक़
करें जो ज़ब्त कलेजा सराहिए उन का
कि आसमाँ को बुलाते हैं नाला-हा-ए-फ़िराक़
जुदा 'हफ़ीज़' हुआ कौन तेरे पहलू से
लबों पर आठ-पहर है जो हाए हाए फ़िराक़
- पुस्तक : Kulliyat-e-Hafeez Jaunpuri (पृष्ठ Ghazal Number-106 Page Number-129)
- रचनाकार : Tufail Ahmad Ansari
- प्रकाशन : Qaumi Council Baraye Farogh-e-urdu Zaban (2010)
- संस्करण : 2010
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