'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
यहाँ तो इश्क़ भी तन्हा है हुस्न भी तन्हा
बने वो बात कि अहल-ए-वफ़ा के दिन फिर जाएँ
मिज़ाज-ए-यार की सूरत बदल चले दुनिया
उड़ा के ले ही गईं बू-ए-पैरहन! तेरा
सुबुक-ख़िराम हवाओं पे कोई बस न चला
मिज़ाज-ए-इश्क़ हो मानूस-ए-ज़िंदगी इतना
कि मिस्ल-ए-ख़ल्वत-ए-महबूब हो भरी दुनिया
मिसाल-ए-सुब्ह मिरी ख़ल्वतों में कौन आया
वो रौशनी है कि पलकें झपक रही है फ़ज़ा
हमीं पे जब न तवज्जोह हुई तो हम को क्या
बला से आप किसी के लिए हों क़हर-ओ-बला
वो तू है याद तिरी है कि मेरी हसरत है
ये कौन है मिरे सीने में सिसकियाँ लेता
कुढ़े तो अपनी जगह ख़ुश रहे तो अपनी जगह
'सलीम' हम ने किसी से न कुछ कहा न सुना
- पुस्तक : Pakistani Adab (पृष्ठ 526)
- रचनाकार : Dr. Rashid Amjad
- प्रकाशन : Pakistan Academy of Letters, Islambad, Pakistan (2009)
- संस्करण : 2009
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