शाम-ए-वा'दा है अगर अब भी न वो आए तो फिर
शाम-ए-वा'दा है अगर अब भी न वो आए तो फिर
और इस ग़म में जो धड़कन दिल की रुक जाए तो फिर
जिस से तुम दामन-कशाँ हो ज़िंदगी की राह में
रूह की गहराइयों में वो उतर जाए तो फिर
तुझ को है जिस की वफ़ाओं पर निहायत ए'तिमाद
रेज़ा रेज़ा कर के वो तुझ को बिखर जाए तो फिर
अम्न का परचम लिए फिरते हो सारे शहर में
और नंग-ए-आदमियत तुम ही कहलाए तो फिर
लकड़ियों के घर में मिट्टी का दिया अच्छा नहीं
रौशनी के बदले इस में आग लग जाए तो फिर
- पुस्तक : احساس کے نشاں (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : قمر انجم
- प्रकाशन : ایم آر پبلی کیشن (2018)
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