तुम मिरे दिल में रहो हसरत-ओ-अरमाँ हो कर
तुम मिरे दिल में रहो हसरत-ओ-अरमाँ हो कर
ख़ाना-ए-दिल न मिटे ख़ाना-ए-वीराँ हो कर
मह-ओ-अंजुम रुख़-ए-पुर-नूर पे क़ुर्बां हो कर
चाह में तेरी रहे चाह-ए-ज़नख़दाँ हो कर
हक़ ने महबूब को देखा तो कहा ये हँस के
मेरी तस्वीर बने बैठे हो इंसाँ हो कर
साथ रहने से मोहब्बत भी तो हो जाती है
क्यों कहीं जाए हमारी शब-ए-हिज्राँ हो कर
तू वो तस्वीर है तस्वीर तिरी खींच न सकी
जल उठे लौह-ओ-क़लम सर्व-ए-चराग़ाँ हो कर
दीद का शौक़ है जिस को वो नज़ारा कर ले
सामने बैठे हैं वो सर्व-ए-चराग़ाँ हो कर
दोनों आलम हैं तिरी बर्क़-ए-नज़र से घायल
तीर बन कर कहीं चमकी कहीं पैकाँ हो कर
लज़्ज़त-ए-गर्दिश-ओ-आफ़ात-ए-मुसलसल मत पूछ
जब मरज़ हद से बढ़ा रह गया दरमाँ हो कर
शे'र कह कर भी मैं गुमनाम अभी तक हूँ 'क़दीर'
यही मिसरा मिरा रह जाएगा दीवाँ हो कर
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