तुम्हारी हाँ से बहुत रौशनी निकलती है
तुम्हारी हाँ से बहुत रौशनी निकलती है
ये किस बयाँ से बहुत रौशनी निकलती है
वो ज़ात पर्दा-नशीं है मगर मैं हैराँ हूँ
कि आसमाँ से बहुत रौशनी निकलती है
बसा हुआ है तिरे तिल में एक अनोखा जहान
और उस जहान से बहुत रौशनी निकलती है
मैं चुपके चुपके तिरा नाम ले तो लूँ लेकिन
मिरी ज़बाँ से बहुत रौशनी निकलती है
जहाँ-जहाँ से मुझे चूमता रहा है वो
वहाँ-वहाँ से बहुत रौशनी निकलती है
तू किस की याद में रोता है रात-भर 'अहमद'
तिरे मकाँ से बहुत रौशनी निकलती है
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