वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है इंसाँ इंसाँ बनेगा कब
वेद उपनिषद पुर्ज़े पुर्ज़े गीता क़ुरआँ वरक़ वरक़
राम-ओ-कृष्न-ओ-गौतम-ओ-यज़्दाँ ज़ख़्म-रसीदा सब के सब
अब तक ऐसा मिला न कोई दिल की प्यास बुझाता जो
यूँ मय-ख़ाना-चश्म बहुत हैं बहुत हैं यूँ तो साक़ी-लब
जिस की तेग़ है दुनिया उस की जिस की लाठी उस की भैंस
सब क़ातिल हैं सब मक़्तूल हैं सब मज़लूम हैं ज़ालिम सब
ख़ंजर ख़ंजर क़ातिल अबरू दिलबर हाथ मसीहा होंट
लहू लहू है शाम-ए-तमन्ना आँसू आँसू सुब्ह-ए-तरब
देखें दिन फिरते हैं कब तक देखें फिर कब मिलते हैं
दिल से दिल आँखों से आँखें हाथ से हाथ और लब से लब
ज़ख़्मी सरहद ज़ख़्मी क़ौमें ज़ख़्मी इंसाँ ज़ख़्मी मुल्क
हर्फ़-ए-हक़ की सलीब उठाए कोई मसीह तो आए अब
- पुस्तक : Kulliyat-e-Ali Sardar Jafri Vol.II (पृष्ठ 344)
- रचनाकार : Ali Ahmad Fatmi
- प्रकाशन : Qaumi Council Baray-e-farog Urdu Zaban, New Delhi (2005)
- संस्करण : 2005
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