राहत इंदौरी 11 अगस्त को एक लंबा और मुशायरों के शोर-शराबे से भरा जीवन गुज़ार कर चले गए। वो जिस कम-उम्री में, आम सी शक्ल-ओ-सूरत और ग़ैर-रिवायती हाव-भाव के साथ मुशायरों की दुनिया में आए थे उस वक़्त किसी के लिए यह अंदाज़ा लगाना
भी मुश्किल रहा होगा कि ये शख़्स एक समय में इस दुनिया का बे-ताज बादशाह होगा और मुशायरागाह में उसका नाम पुकारे जाते ही श्रोताओं के दिलों की धड़कनें तेज़ होने लगेंगी।
आज हम 73 वे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको उस समय में ले चलते हैं जब आज़ादी के इन ख़ूबसूरत दिनों के लिए हमारे अज्दाद संघर्ष कर रहे थे और जेलों में बंद अंग्रेज़ी हुकूमत की ज़्यादतियां बर्दाश्त कर थे।
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम आपके लिए उर्दू में लिखी गईं चंद ऐसी कहानियां लेकर आए हैं जो अलग-अलग समय में आज़ादी की तहरीक के तनाज़ुर में लिखी गई हैं। इन कहानियों में आज़ादी से पहले के हिन्दुस्तानी समाज की झलकियां भी
हैं और आज़ाद देश के ख़्वाबों की तस्वीरें भी। साथ ही उन दुखों और उम्मीदों के क़िस्से भी जो देश की आज़ादी और विभाजन से वाबस्ता रहे।
उर्दू के साहित्यिक इतिहास में रियाज़ पहले ऐसे शायर हैं जो शराब और उससे जुड़े विषयों पर उम्र-भर शेर कहते रहे। उसके ज़ायक़ों, रंगों और कैफ़िय्यतों की तस्वीरें बनाते रहे। अपनी शायरी की इसी विशेषता के कारण उनके नाम के साथ ‘ख़य्याम-अल-हिंद’
और ‘माहिर-ए-ख़मरियात’ जैसे अलक़ाब का इज़ाफ़ा किया गया।
ज़िन्दगी हमारे सामने कई रूप और कई रंगों के साथ मौजूद है। आज कुछ ऐसे हालात बनते जा रहे हैं कि कहीं भी उम्मीद की कोई रौशनी नज़र नहीं आती। मुस्तक़बिल किसी ज़र्द दरीचे के उस पार का अँधेरा लगता है। ऐसे हालात में शायरी उन चंद
सहारों में से एक सहारा है जो ज़िंदगी में उम्मीद और हौसले के चराग़ रोशन रखने का काम कर सकती है।