अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ | निज़ाम रामपुरी | 0 | 1 |
अपनी धुन में रहता हूँ | नासिर काज़मी | 2 | 1 |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें | अहमद फ़राज़ | 2 | 10 |
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे | शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ | 1 | 3 |
अशआर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं | जाँ निसार अख़्तर | 1 | 1 |
असर उस को ज़रा नहीं होता | मोमिन ख़ाँ मोमिन | 2 | 3 |
आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो | मोमिन ख़ाँ मोमिन | 0 | 1 |
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 2 | 12 |
आप की याद आती रही रात भर | मख़दूम मुहिउद्दीन | 1 | 12 |
आप जिन के क़रीब होते हैं | नूह नारवी | 0 | 9 |
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 16 |
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो | जाँ निसार अख़्तर | 1 | 7 |
इंशा-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या | इब्न-ए-इंशा | 2 | 3 |
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं | दाग़ देहलवी | 1 | 2 |
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया | मीर तक़ी मीर | 2 | 5 |
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए | बहज़ाद लखनवी | 1 | 3 |
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया | शकील बदायुनी | 1 | 6 |
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 1 | 3 |
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं | क़मर जलालवी | 1 | 1 |
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में | अल्लामा इक़बाल | 1 | 4 |
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता | निदा फ़ाज़ली | 0 | 4 |
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा | इब्न-ए-इंशा | 1 | 2 |
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है | मुस्तफ़ा ज़ैदी | 0 | 2 |
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी | परवीन शाकिर | 1 | 1 |
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की | परवीन शाकिर | 0 | 3 |
कोई उम्मीद बर नहीं आती | मिर्ज़ा ग़ालिब | 1 | 6 |
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा | कैफ़ भोपाली | 1 | 1 |
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही | सिराज औरंगाबादी | 1 | 4 |
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मोहब्बतें कैसी | उबैदुल्लाह अलीम | 0 | 2 |
ग़ज़ब किया तिरे वअदे पे एतिबार किया | दाग़ देहलवी | 0 | 3 |
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे | शकील बदायुनी | 1 | 1 |
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं | क़तील शिफ़ाई | 1 | 4 |
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 1 | 4 |
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर | अल्लामा इक़बाल | 1 | 1 |
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए | ख़ातिर ग़ज़नवी | 1 | 5 |
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया | परवीन शाकिर | 1 | 1 |
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है | हसरत मोहानी | 0 | 3 |
जब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम | निदा फ़ाज़ली | 0 | 1 |
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है | हकीम नासिर | 0 | 2 |
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे | वली मोहम्मद वली | 1 | 2 |
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने | शहरयार | 1 | 1 |
ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ | अमीर ख़ुसरो | 0 | 6 |
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम | शाद अज़ीमाबादी | 1 | 2 |
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम | साहिर लुधियानवी | 1 | 2 |
तिरे आने का धोका सा रहा है | नासिर काज़मी | 1 | 2 |
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ | अल्लामा इक़बाल | 0 | 3 |
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 2 | 10 |
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था | दाग़ देहलवी | 1 | 3 |
दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी | साक़ी फ़ारुक़ी | 2 | 0 |
दिल धड़कने का सबब याद आया | नासिर काज़मी | 0 | 4 |
दिल में इक लहर सी उठी है अभी | नासिर काज़मी | 1 | 4 |
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 9 |
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 14 |
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है | क़ैसर-उल जाफ़री | 0 | 4 |
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद | जिगर मुरादाबादी | 2 | 2 |
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम | नज़ीर अकबराबादी | 0 | 2 |
देख तो दिल कि जाँ से उठता है | मीर तक़ी मीर | 1 | 1 |
देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो | अंदलीब शादानी | 1 | 2 |
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 2 | 6 |
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ | मुज़्तर ख़ैराबादी | 2 | 5 |
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया | मीराजी | 0 | 1 |
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम | जौन एलिया | 0 | 1 |
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है | मीर तक़ी मीर | 1 | 5 |
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 5 |
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे | मिर्ज़ा ग़ालिब | 0 | 4 |
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी | बहादुर शाह ज़फ़र | 1 | 5 |
मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे | मुईन अहसन जज़्बी | 1 | 3 |
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है | अहमद मुश्ताक़ | 1 | 2 |
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे | शकील बदायुनी | 0 | 7 |
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है | सलीम कौसर | 1 | 5 |
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे | हफ़ीज़ होशियारपुरी | 1 | 5 |
यारो मुझे मुआफ़ रखो मैं नशे में हूँ | मीर तक़ी मीर | 0 | 5 |
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो | बशीर बद्र | 1 | 3 |
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते | हैदर अली आतिश | 1 | 6 |
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है | शहरयार | 1 | 1 |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 11 |
रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 1 | 4 |
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | अहमद फ़राज़ | 2 | 9 |
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो | मिर्ज़ा ग़ालिब | 1 | 2 |
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम | हसरत मोहानी | 1 | 3 |
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में | बहादुर शाह ज़फ़र | 1 | 3 |
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले | शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ | 2 | 7 |
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा | दाग़ देहलवी | 0 | 2 |
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें | शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ | 0 | 0 |
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो | मोमिन ख़ाँ मोमिन | 2 | 11 |
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा | परवीन शाकिर | 0 | 1 |
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | 4 | 7 |
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं | फ़िराक़ गोरखपुरी | 0 | 2 |
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता | अमीर मीनाई | 0 | 4 |
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं | अल्लामा इक़बाल | 1 | 1 |
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है | शहरयार | 1 | 2 |
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं | अहमद फ़राज़ | 0 | 11 |
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया | जोश मलीहाबादी | 1 | 1 |
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है | अकबर इलाहाबादी | 0 | 4 |
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले | मिर्ज़ा ग़ालिब | 2 | 8 |
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा | मजरूह सुल्तानपुरी | 3 | 1 |
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके | हफ़ीज़ जालंधरी | 0 | 2 |
हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह | मजरूह सुल्तानपुरी | 4 | 2 |
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है | मिर्ज़ा ग़ालिब | 0 | 8 |
हस्ती अपनी हबाब की सी है | मीर तक़ी मीर | 2 | 1 |