कुंजश्क-ओ-दरना ताज़ा-दम लाला कँवल और नस्तरन
रोचक तथ्य
خمسہ بر غزلِ سردار جعفری
कुंजश्क-ओ-दरना ताज़ा-दम लाला कँवल और नस्तरन
वो बुलबुल-ओ-ताऊस-ओ-गुल वो कौकब और वो यासमन
गुल-हा-ए-सद-रंगीं-क़बा मुर्ग़ान-ए-सद-शीरीं-दहन
''गुलशन कहो तुम या चमन है अहल-ए-दिल की अंजुमन
सद बुलबुल-ए-शोरीदा-सर सद लाला-ए-ख़ूनीं-कफ़न''
वो बाग़-ए-यक-मीनू-सिफ़त गंजीना-ए-सर्व-ओ-समन
मसहूर-कुन वो चहचहे वो लहन-ए-सद-नाज़-ए-सुख़न
है अम्बरीं जिस की फ़ज़ा मुश्क-ए-ख़ुतन जिस की पवन
''इस बाग़ में आती है इक महबूबा-ए-गुल-पैरहन
शीरीं-नवा शीरीं-अदा शीरीं-सुख़न शीरीं-दहन''
वो है इलाज-ए-दर्द-ए-दिल दिल की मगर हलचल भी है
वो आश्ना-ए-ग़म भी है लेकिन बहुत चंचल भी है
वो जल्वा-ए-माह-ए-मुबीं वो नाज़नीं सांवल भी है
''वो गुल भी है सूरज भी है बिजली भी है बादल भी है
देखा न था पहले कभी ऐसा हसीं बाँका सजन''
ऐसे वो आया माह-रू औसान सब के आ लिए
नोक और पलक अब शे'र की क्या देखिए क्या भालिए
अश अश के इस तूफ़ान को आख़िर कहाँ तक टालिए
''पैकर को उस के शे'र के पैकर में क्यूँकर ढालिए
ख़ामोश हैं हैरान हैं सब शह्रयारान-ए-सुख़न''
बुलबुल सी वो नग़्मा-कुनाँ मुस्कान ग़ुंचे की चटक
तेवर वो बिजली की लपक लालीँ वो आरिज़ की धनक
ज़ुल्फ़ों में अम्बर की महक आँखों में तारों की दमक
''पेशानी-ए-सीमीं है या सुब्ह-ए-तख़य्युल की चमक
शाइस्तगी-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न उस के तबस्सुम की किरन''
वो हुस्न सा पाइंदा है वो माह सा रख़्शंदा है
बेहद ही वो बख़्शिंदा है और सब से ही ज़ेबिंदा है
जो देख ले फ़र्ख़न्दा है चाहे जो उस को ज़िंदा है
''हूर-ओ-परी शर्मिंदा है वो इस क़दर ताबिंदा है
देखे से निखरे रंग-ए-रुख़ छूने से मैला हो बदन''
चाहो बहुत सुनते रहो उस ज़िंदगी के साज़ को
दिल में ही बस रक्खो मगर तुम उन्स के उस राज़ को
जो कुछ भी हो तुम छूना मत उस पैकर-ए-अंदाज़ को
''बस दूर से देखा करो उस शम्अ'-ए-बज़्म-ए-नाज़ को
वो रौनक़-ए-काशाना-ए-दिल हैरत-ए-सद-अंजुमन''
बातों में उस की है अयाँ वाज़ेह ये मुबहम कौन है
सोचों में उस की दम-ब-दम मौजूद पैहम कौन है
तन्हाई के इस दश्त में ये उस का हमदम कौन है
''आओ चलें देखें ज़रा वो जान-ए-आलम कौन है
'सरदार' के शे'रों में है ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर की शिकन''
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