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होली खेलने की फ़रमाइश पर

कँवल डिबाइवी

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    है ये अहबाब को इसरार कि होली खेलूँ

    तोड़ दूँ आज तो मैं ज़ोहद-ओ-तक़द्दुस का फ़ुसूँ

    मस्त हो कर मैं पियूँ जाम-ए-शराब-ए-हस्ती

    हमा-तन बादा-ए-इशरत के नशे में झूमूँ

    अपनी संजीदा रविश और उदासी छोड़ूँ

    ग़म के असनाम को बुत-ख़ाना-ए-दिल में तोड़ूँ

    जल उठें ग़म के शबिस्ताँ में मसर्रत के चराग़

    बरबत-ए-दिल के हर इक तार को फिर से जोड़ूँ

    मुझ को बहलाएँगे क्या अहल-ए-तरब के नग़्मे

    और त्यौहार की रंगीन ख़ुशी के लम्हे

    मैं ने हर नक़्श-ए-मसर्रत को दबा रक्खा है

    और देखे हैं हसीं दौर के सुंदर सपने

    सूनी सूनी नज़र आती है बिसात-ए-हस्ती

    कहीं शीशा-ओ-साग़र सुरूर-ओ-मस्ती

    चश्म-ए-मुफ़्लिस में लरज़ते हुए अश्कों के चराग़

    क़ल्ब-ए-नादार है जैसे कोई उजड़ी बस्ती

    आज इंसान का इंसान लहू पीता है

    आज तहज़ीब का सुल्तान यूँही जीता है

    देवता जब्र पे रावण के हिरासाँ जैसे

    दामन-ए-अरमान को नादार यूँही सीता है

    आज इंसान हुआ मक्र-ओ-दग़ा का दफ़्तर

    क़ल्ब-ए-ज़रदार है एहसास-ए-ख़ुदी का ख़ूगर

    बे-ख़बर हो के ग़रीबों की दबी आहों से

    आदमी किब्र-ओ-रऊनत का बना है पैकर

    होलियाँ खेलते हैं ख़ून-ए-बशर से मुनइम

    अपने आमाल पे होता नहीं इंसाँ नादिम

    आह अफ़्लास से ठुकराई जवानी का शबाब

    फ़िक्र की धूप से लर्ज़ां है मिसाल-ए-मुजरिम

    क़ल्ब-ए-महकूम है इस दौर में सुनसान दयार

    हो गया है दिल-ए-मजबूर दुखों से बेज़ार

    क्या आएगा कभी दहर में प्रहलाद का दौर

    आग होली की किसी रोज़ बनेगी गुलज़ार

    मुतमइन आज दुनिया का मकीं है कोई

    दहर में किब्र से ख़ाली जबीं है कोई

    आज ज़रदार बना बैठा है हिरण्यकश्यप

    आह इस दौर में दम-साज़ नहीं है कोई

    हर तरफ़ किब्र-ओ-रऊनत के सुलगते हैं अलाव

    हर तरफ़ ज़ीस्त के गुलशन में है शोलों का जमाव

    आज फिर होलिका प्रहलाद को ले बैठी है

    फिर से इस जलती हुई आग को गुलज़ार बनाओ

    फिर बदलने हैं मुझे बेकस-ओ-मजबूर के भाग

    आज भी डसते हैं नादार को ज़रदार के नाग

    जज़्ब-ए-एहसास के शोलों की तपिश से इक दिन

    ज़र की लंका में लगा देना है इक बार फिर आग

    स्रोत:

    Mizraab (Kulliyat) (Pg. 76)

    • लेखक: Kanwal Dibaivi
      • संस्करण: 2010
      • प्रकाशक: Kitabi Duniya, Delhi
      • प्रकाशन वर्ष: 2010

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