अहमद शाहिद ख़ाँ के शेर
दुनिया ने जो ज़ख़्म दिए थे भर दिए तेरी यादों ने
यादों ने जो ज़ख़्म लगाए वो बढ़ कर नासूर हुए
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शम्अ की तरह से जलना सीख औरों के लिए
गर तमन्ना दिल में है तो रौनक़-ए-महफ़िल बने
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ये गुत्थी कब से मैं सुलझा रहा हूँ
जहाँ से मैं हूँ या मुझ से जहाँ है
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