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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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एहतमाम सादिक़

1993 | बलरामपुर, भारत

एहतमाम सादिक़

ग़ज़ल 21

अशआर 29

अब इबादत में भी जाते हो लब पर मेरे

इतना पढ़ता हूँ तुम्हें हिज्र के लम्हों में कि बस

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एक हसरत ने हमें रब का मुक़र्रब रखा

हम अगर 'इश्क़ नहीं करते तो काफ़िर होते

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किसी के दीद का पैग़ाम ले के रहा हूँ

तवाफ़ के लिए एहराम ले के रहा हूँ

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मुझ को थी महफ़िलों की बहुत आरज़ू मगर

तन्हाइयों के ख़ौफ़ से तन्हा रहा हूँ मैं

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सो अपने शहर के रौनक़ की ख़ैर माँगना तुम

मैं अपने गाँव से इक शाम ले के रहा हूँ

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चित्र शायरी 1

 

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