aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1901 - 1963
प्रसिद्ध शायर, रूमान और सामाजिक चेतना की नज़्में,ग़ज़लें और रुबाईयाँ कहीं
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में
निकल आती हैं मौजें हम जिसे साहिल समझते हैं
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
वो आफ़्ताब में है न है माहताब में
तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
मेरे जुनूँ ने भर दिए रंग तिरी शबाब में
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का
सज्दे के दाग़ से न हुई आश्ना जबीं
बेगाना-वार गुज़रे हर इक आस्ताँ से हम
Bam-e-Rifat
1954
Jaam-e-Tahoor
Rubaiyat-o- Qataat Ka Majmua
जाम-ए-तहूर
जाम-ए-तुहूर
Jam-e-Sahbai
Khamistaan
1944
Khamistan
khumistan
Rooh-e-Sahbai
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