aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बद्र मुनीर

ग़ज़ल 32

अशआर 33

कचरे से उठाई जो किसी तिफ़्ल ने रोटी

फिर हल्क़ से मेरे कोई लुक़्मा नहीं उतरा

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इस से बढ़ कर और क्या हम पर सितम होगा 'मुनीर'

मशवरा माँगा है इस ने फ़ैसला करने के बा'द

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जब वस्ल का आएगा तिरे साथ सनम दिन

उस दिन को हक़ीक़त में कहूँगा मैं जनम-दिन

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पड़ जाते हैं कितने छाले हाथों में

आते हैं फिर चंद निवाले हाथों में

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क्या ख़बर कौन सा रस्ता तिरी जानिब निकले

बे-इरादा भी कई बार सफ़र करते हैं

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हास्य शायरी 31

क़ितआ 29

पुस्तकें 2

 

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