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बन्द्र इब्न-ए-राक़िम

बन्द्र इब्न-ए-राक़िम

अशआर 4

इतना ही चाहता हूँ कि मैं और अंदलीब

आपस में दर्द-ए-दिल कहें टुक बैठ कर कहीं

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बाग़बाँ नहीं तिरे गुलशन से कुछ ग़रज़

मुझ से क़सम ले छेड़ूँ अगर बर्ग-ओ-बर कहीं

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कुछ ऐसी बन गई तस्वीर उस के दस्त-ए-क़ुदरत से

रहा हैराँ बना कर आप सूरत-आफ़रीं बरसों

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सुना किस ने हाल मेरा कि जूँ अब्र वो रोया

रखे है मगर ये क़िस्सा असर-ए-दुआ-ए-बाराँ

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