हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल 41
अशआर 26
अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआ
निपट ही तुंद है ज़ालिम की ख़ू हुआ सो हुआ
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खेलें आपस में परी-चेहरा जहाँ ज़ुल्फ़ें खोल
कौन पूछे है वहाँ हाल-ए-परेशाँ मेरा
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साक़िया पैहम पिला दे मुझ को माला-माल जाम
आया हूँ याँ मैं अज़ाब-ए-होशयारी खींच कर
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