join rekhta family!
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
-
टैग : इंसान
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
-
टैग : दिल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
मैं उस की क़ैद में हूँ क़ैद से रिहाई में भी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे
-
टैग : हिजरत
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
अजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में
-
टैग : दुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
उसी पे ज़र्ब पड़ी जो शजर पुराना था
-
टैग : शजर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बुलंद हाथों में ज़ंजीर डाल देते हैं
अजीब रस्म चली है दुआ न माँगे कोई
-
टैग : दुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल
नई किताब का एक इक वरक़ पुराना था
-
टैग : किताब
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
पयम्बरों से ज़मीनें वफ़ा नहीं करतीं
हम ऐसे कौन ख़ुदा थे कि अपने घर रहते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तमाम ख़ाना-ब-दोशों में मुश्तरक है ये बात
सब अपने अपने घरों को पलट के देखते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हमीं में रहते हैं वो लोग भी कि जिन के सबब
ज़मीं बुलंद हुई आसमाँ के होते हुए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
ख़ाक में दौलत-ए-पिंदार-ओ-अना मिलती है
अपनी मिट्टी से बिछड़ने की सज़ा मिलती है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रोज़ इक ताज़ा क़सीदा नई तश्बीब के साथ
रिज़्क़ बर-हक़ है ये ख़िदमत नहीं होगी हम से
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मिरा ख़ुश-ख़िराम बला का तेज़-ख़िराम था
मिरी ज़िंदगी से चला गया तो ख़बर हुई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया