अब अपने-आप को ख़ुद ढूँढता हूँ
तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं
8 अगस्त, 1983 को संत कबीर नगर (उ.प्र.) के एक साधारण परिवार में जन्मे इरशाद ख़ान सिकन्दर ने बहुत कम समय में उर्दू, हिंदी,भोजपुरी के साहित्यिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में अपनी पुख़्ता पहचान बनाई है।
एक आला दर्जे के ग़ज़ल-गो और गीतकार होने के इलावा इरशाद की ख़ूबियों में पार्श्व स्वर(Voice Over) और संपादन का तजरिबा भी शामिल है। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पुस्तकों का संपादन किया।
उनके द्वारा लिखित कई कहानियाँ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर सुर्ख़ियाँ बटोर चुकी हैं।
राजपाल एंड संस से प्रकाशित उनके दोनों ग़ज़ल संग्रह ‘दूसरा इश्क़’और 'आँसुओं का तर्जुमा' पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। अभी हाल ही में ‘आँसुओं का तर्जुमा’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय शिवना कविता सम्मान’ से नवाज़ा गया है। इरशाद की नयी कृति ‘’जौन एलिया का जिन’’ प्रसिद्ध शायर जौन एलिया के त्रासद जीवन पर केन्द्रित है ।