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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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कैफ़ अज़ीमाबादी

1937

कैफ़ अज़ीमाबादी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 4

ख़ुशबू-ए-हिना कहना नर्मी-ए-सबा कहना

जो ज़ख़्म मिले तुम को फूलों की क़बा कहना

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तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा करो

तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे

दीवार-ओ-दर पे ख़ून के छींटे हैं जा-ब-जा

बिखरा हुआ है रंग-ए-हिना तेरे शहर में

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निकल आए तन्हा तिरी रह-गुज़र पर

भटकने को हम कारवाँ छोड़ आए

पुस्तकें 3

 

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