ख़ावर नक़वी
ग़ज़ल 1
अशआर 1
कभी मैं ढलता हूँ काग़ज़ पे नक़्श की सूरत
मैं लफ़्ज़ बन के किसी की ज़बाँ में तैरता हूँ
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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