रऊफ़ ख़ैर
ग़ज़ल 21
नज़्म 1
अशआर 3
खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं
वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता
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खिलौने की तड़प में ख़ुद खिलौना वो न बन जाए
मिरा बच्चा सड़क पर रेज़गारी ले के निकला है
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हड्डियाँ बाप की गूदे से हुई हैं ख़ाली
कम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
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