aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1862 - 1950 | लखनऊ, भारत
क्लासिकी के आख़िरी प्रमुख शायरों में अहम नाम। व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की
ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
शायरी भी ख़त्म हो जाती नबुव्वत की तरह
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो
दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे
क्यूँ अपने साथ ले न गया नामा-बर मुझे
देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
क्या जाने क्या हो पर्दा जो उट्ठे नक़ाब का
Aahang-e-Hijazi
Charagh-e-Der
दीवान-ए-सफ़ी
1953
Deewanji
Kulliyat-e-Zareef Lucknowi
1949
Diwanji
Kulliyat-e-Zafir Lucknovi
Haftkhwan-e-Urdu
Urdu Adab Ki Manzoom Tareekh
Intikhab Kalam-e-Safi
1983
इंतिख़ाब-ए-कलाम-ए-सफ़ी
Intikhab-e-Lakht-e-Jigar
1985
Jawahar Muhra
1908
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