शख़ावत शमीम के शेर
जाँ-ब-लब लम्हा-ए-तस्कीं मिरी क़िस्मत है 'शमीम'
बे-ख़ुदी फिर मुझे दीवाना बनाती क्यूँ है
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टैग : बेख़ुदी
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रात हिस्सा है मिरी उम्र का जी लेने दे
ज़िंदगी छोड़ के तन्हा मुझे जाती क्यूँ है
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