शाहिद मीर
ग़ज़ल 16
अशआर 9
ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा
तेज़ हैं कितनी हवाएँ इस का अंदाज़ा लगा
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तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने
आ किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे
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बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए
मिटती हुई सितारों की सफ़ देखते रहे
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रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है
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