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अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
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टैग : तन्हाई
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इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
आने वाले बरसों ब'अद भी आते हैं
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नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
तुझे भी भूल गए हम तिरी ख़ुशी के लिए
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छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा
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कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल
अभी तो लोग तरसते हैं ज़िंदगी के लिए
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देखते देखते इक घर के रहने वाले
अपने अपने ख़ानों में बट जाते हैं
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इस शहर को रास आई हम जैसों की गुम-नामी
हम नाम बताते तो ये शहर भी जल जाता
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औरत के ख़ुदा दो हैं हक़ीक़ी ओ मजाज़ी
पर उस के लिए कोई भी अच्छा नहीं होता
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टैग : औरत
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तुम से हासिल हुआ इक गहरे समुंदर का सुकूत
और हर मौज से लड़ना भी तुम्ही से सीखा
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जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर था
आज उन्हीं बातों से दिल बहलाए हुए हूँ
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कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए
कुछ किया जाए चराग़ों को बुझाया जाए
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भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ
वो सितमगर जो न भूले से भुलाया जाए
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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब महफ़िल याराँ में भी तन्हाई है देखो
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दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
तन्हा नज़र आते हैं ग़म-ए-यार के होते
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ज़मीं पर गिर रहे थे चाँद तारे जल्दी जल्दी
अंधेरा घर की दीवारों से ऊँचा हो रहा था
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मय-ए-हयात में शामिल है तल्ख़ी-ए-दौराँ
जभी तो पी के तरसते हैं बे-ख़ुदी के लिए
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टैग : बेख़ुदी
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दीवानों को अब वुसअत-ए-सहरा नहीं दरकार
वहशत के लिए साया-ए-दीवार बहुत है
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हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
ख़ुद ही भटक गए जो कभी रास्ता मिला
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लो डूबतों ने देख लिया नाख़ुदा को आज
तक़रीब कुछ तो बहर-ए-मुलाक़ात हो गई
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