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आलम ख़ुर्शीद

1959 | पटना, भारत

महत्वपूर्ण उत्तर-आधुनिक शायर।

महत्वपूर्ण उत्तर-आधुनिक शायर।

आलम ख़ुर्शीद

ग़ज़ल 48

अशआर 26

पूछ रहे हैं मुझ से पेड़ों के सौदागर

आब-ओ-हवा कैसे ज़हरीली हो जाती है

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पीछे छूटे साथी मुझ को याद जाते हैं

वर्ना दौड़ में सब से आगे हो सकता हूँ मैं

बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में

फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से

मोहब्बतों के कई रंग रूप होते हैं

फ़रेब-ए-यार से कोई गिला नहीं करते

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हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं

भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं

पुस्तकें 11

वीडियो 4

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द

आलम ख़ुर्शीद

हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता

आलम ख़ुर्शीद

 

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