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रुबाई

रुबाई उर्दू की नज़्म-शायरी की विधा है जो चार मिसरों पर आधारित होती है। इन चार मिसरों में पहले, दूसरे और चौथे मिसरों में क़ाफ़िए की समानता होती है। रुबाई के लिए 24 वज़्न (छंद) तय हैं। किसी रुबाई के सारे मिसरे इन में से किसी एक वज़्न में हो सकते हैं और हर मिसरा अलग वज़्न में भी हो सकता है।

1814 -1880

प्रसिद्ध क्लासिकी शायर जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया

1797 -1869

विश्व-साहित्य में उर्दू की सबसे बुलंद आवाज़। सबसे अधिक सुने-सुनाए जाने वाले महान शायर

1803 -1874

लखनऊ के अग्रगी क्लासिकी शायरों में विख्यात/मर्सिया के महान शायर

1723 -1810

उर्दू के पहले बड़े शायर जिन्हें 'ख़ुदा-ए-सुख़न' (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है

1717 -1786

प्रमुख मर्सिया-निगार। मसनवी ‘सहर-उल-बयान’ के लिए विख्यात

1800 -1852

ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन। वह हकीम, ज्योतिषी और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। कहा जाता है मिर्ज़ा ग़ालीब ने उनके शेर "तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नही होता" पर अपना पूरा दीवान देने की बात कही थी

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