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रुबाई

रुबाई उर्दू की नज़्म-शायरी की विधा है जो चार मिसरों पर आधारित होती है। इन चार मिसरों में पहले, दूसरे और चौथे मिसरों में क़ाफ़िए की समानता होती है। रुबाई के लिए 24 वज़्न (छंद) तय हैं। किसी रुबाई के सारे मिसरे इन में से किसी एक वज़्न में हो सकते हैं और हर मिसरा अलग वज़्न में भी हो सकता है।

1713 -1781

18वी सदी के बड़े शायरों में शामिल। मीर तक़ी 'मीर' के समकालीन

1935 -2020

शायर, कथाकार और श्रेष्ठ उर्दू समीक्षक

1846 -1927

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात।

1924 -1995

शायर,पत्रकार और गीतकार। ग़ुलाम बेगम बादशाह और झाँसी की रानी जैसी फ़िल्मों के संवाद लेखक

1859 -1908

अनुवादक,शायर,कुल्लियात-ए-नज़ीर के संपादक और शोधकर्ता

1873 -1910

नयी नज़्म को विषयगत और शैली के लिहाज़ से समृद्ध करने में मुख्य भूमिका निभाई

1863 -1962

पंडित अमरनाथ साहिर दिल्ली में कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रमुख कवियों में एक महत्वपूर्ण नाम। अपनी रचनाओं में सूफ़ीवाद और वेदांत रहस्यवाद के संयोजन के लिए चर्चित।

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