aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "रिवायतें"
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न थावो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
ज़िंदगी-भर के शिकवे गिले थे बहुत वक़्त इतना कहाँ था कि दोहराते हमएक हिचकी में कह डाली सब दास्ताँ हम ने क़िस्से को यूँ मुख़्तसर कर लिया
हम न होते तो किसी और के चर्चे होतेख़िल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैंइन आँखों से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़िय्यत-ए-सहबा के अफ़्सानेशराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
ऐ दिल कुछ और बात की रग़बत न दे मुझेसुननी पड़ेंगी सैकड़ों उस को लगा के हाथ
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हमबस तरसते ही चले अफ़्सोस पैमाने को हम
लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैंकुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का
जिस की बातों के फ़साने लिक्खेउस ने तो कुछ न कहा था शायद
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गएवो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
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