aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "دسمبر"
दिगम्बर प्रसाद गाैहर देहलवी
संपादक
दिगम्बर जैन समाज, टोंक
पर्काशक
यकुम जनवरी है नया साल हैदिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है
दिसम्बर की सर्दी है उस के ही जैसीज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है
गले मिला था कभी दुख भरे दिसम्बर सेमिरे वजूद के अंदर भी धुँद छाई थी
रक़्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगाछे दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा
बर्फ़ की तरह दिसम्बर का सफ़र होता हैहम उसे साथ न लेते तो रज़ाई लेते
दिसम्बरدسمبر
December
Prem Chand Number: October-December: Shumara Number-084
असग़र हुसैन क़ुरैशी
तकमील
Naat Number: July-December: Shumara Number-002,003
अब्दुल ग़फ़्फ़ार
निज़ाम कॉलेज उर्दू मैगज़ीन
Nassakh Number: November-December: Shumara Number-021-024
मोहम्मद मुस्तफ़ा
मग़रिबी बंगाल
Khususi Shumara: Editor Number: November,December: Shumara Number-005-006
कन्हैया लाल
चाँद
December: Shumara Number-008
अफ़्सर सहबाई
आज़र
Gosha-e-Baqar Mehdi: July-December: Shumara Number-075,076
मज़हर सलीम
December Ke Baad
शहज़ाद क़ैस
Ariya Musafir,Jalandhar
लाला मुंशी राम प्लीडर
Iqbal Sadi Number: December: Shumara Number-023
रियाज़ अहमद खान
क़ौमी राज
Shumara Number-012: December
वफ़ा मलिकपुरी
सुब्ह-ए-नौ
Hali Aur Sar-Zameen-e-Hali Number: July-December: Shumara Number-003,004
कश्मीरी लाल ज़ाकिर
जम्ना तट
December: Shumara Number-012
शैख़ मोहम्मद अब्दुल्लाह
ख़ातून, अलीगढ़
December: Shumara Number-011
अलाउद्दीन ख़ालिद
उर्दू साइकोलॉजी
Ali Sardar Jafri Number: July-December: Shumara Number-003,004
मलिका नसीम
मोहम्मद ज़फरुद्दीन नासिर
हकीम-ए-दकन
यादों की शाल ओढ़ के आवारा-गर्दियाँकाटी हैं हम ने यूँ भी दिसम्बर की सर्दियाँ
उससे तीसरी मर्तबा मेरी मुलाक़ात फिर अपोलोबंदर पर हुई। इस दफ़ा मैं उसे अपने घर ले गया। रास्ते में हमारी कोई बातचीत न हुई लेकिन घर पर उसके साथ बहुत सी बातें हुईं। जब वो मेरे कमरे में दाख़िल हुआ तो उसके चेहरे पर चंद लम्हात के लिए उदासी छा गई। मगर वो फ़ौरन सँभल गया और उसने अपनी आदत के ख़िलाफ़ अपने आप को बहुत तर-ओ-ताज़ा और बातूनी ज़ाहिर करने की कोशिश की। उसको इस हालत में देख कर मुझे उस पर और भी तरस आगया। वो एक मौत जैसी यक़ीनी हक़ीक़त को झुटला रहा था और मज़ा ये है कि इस ख़ुदफ़रेबी से कभी कभी वो मुतमइन भी नज़र आता था।
पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर थामहके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था
ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गयातुम से मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया
धड़कता तो है मुस्कुराता नहींदिसम्बर मुझे रास आता नहीं
इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ करगुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले
फिर आ गया है एक नया साल दोस्तोइस बार भी किसी से दिसम्बर नहीं रुका
उम्मीद कर चुका था नए साल से बहुतइक और ज़ख़्म दे के दिसम्बर चला गया
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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