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नज़्म
हिज्र की राख और विसाल के फूल
आज फिर दर्द-ओ-ग़म के धागे में
हम पिरो कर तिरे ख़याल के फूल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
मोती हूँ तो फिर सोज़न-ए-मिज़्गाँ से पिरो लो
आँसू हो तो दामन पे गिरा क्यूँ नहीं देते
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
शब-ए-हिज्राँ के माथे पर सवेरे फिर से रौशन हों
ये रुत गजरे पिरो जाए अगर तुम मिलने आ जाओ