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शेर
मंज़र अय्यूबी
शेर
हाए उस दस्त-ए-करम ही से मिले जौर-ओ-जफ़ा
मुझ को आग़ाज़-ए-मोहब्बत ही में मर जाना था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
क़लक़-ए-दिल से हैं जैसे मिरे रुख़्सारे ज़र्द
फूल गेंदे के भी हों ऐसे न बेचारे ज़र्द
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मिरे नक़्श-ए-क़दम पर अहल-ए-दिल का क़ाफ़िला होगा
मैं अपनी राह में ऐसी बग़ावत छोड़ आई हूँ
इरुम ज़ेहरा
शेर
जब अर्श-ए-मुअल्ला पे मिरे नक़्श-ए-क़दम हैं
क्या चीज़ है फिर औज-ए-सुरय्या मिरे आगे