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शेर
मोती पिरो के ज़ुल्फ़ में अख़्तर बना दिए
तू ने अँधेरी रात में तारे दिखा दिए
सर फ्लोरेंस फेलिज़ मतलूब
शेर
वो अपनी उम्र को पहले पिरो लेता है डोरी में
फिर उस के बा'द गिनती उम्र की दिन रात करता है
वज़ीर आग़ा
शेर
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
किसी के रुख़ के तसव्वुर में दिन तमाम किया
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
ग़ैर से दूर मगर उस की निगाहों के क़रीं
महफ़िल-ए-यार में इस ढब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
शेर
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
शेर
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ
बशीर बद्र
शेर
वक़्त-ए-पीरी दोस्तों की बे-रुख़ी का क्या गिला
बच के चलते हैं सभी गिरती हुई दीवार से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
ख़ाक के पुतले का है ख़ाक का पुतला आशिक़
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़