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ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं 'राना'
हर इक इंसान को अपना ज़माना याद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
न बस में ज़िंदगी उस के न क़ाबू मौत पर उस का
मगर इंसान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
मेरे हाल पे हैरत कैसी दर्द के तन्हा मौसम में
पत्थर भी रो पड़ते हैं इंसान तो फिर इंसान हुआ